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इंटरनेट पर अंधेरे की खौफनाक आहट,


जो दुनिया हम रोजाना देखते हैं और जिसके बारे में पढ़ते-सुनते हैं, अक्सर उसके दो पहलू बताए जाते हैं। एक पहलू उजला है, सकारात्मक है, सार्थक है। दुनिया में आशाओं और विकास में इसी पहलू का योगदान माना जाता है। हर चीज की तरह दुनिया का दूसरा पहलू भी है जो स्याह है। अंधेरे की यह दुनिया तमाम अपराधों व काले कारनामों का अड्डा बताई जाती है। हमारे ब्रह्मांड के बारे में भी दावा है कि हम जितने चांद-सितारों आदि को देख पाते हैं, उससे कई गुना ज्यादा बड़ा अंतरिक्ष डार्क मैटर के रूप में मौजूद हो सकता है। कुछ ऐसी चर्चा लंबे अरसे से उस इंटरनेट को लेकर भी उठती रही है, जो आज हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है। कोरोना काल में तो इसकी उपयोगिताओं का आधार और भी पुख्ता हुआ है। लेकिन इसी के साथ इसके अंधेरे पहलुओं की जानकारी भी गाहे-बगाहे सामने आई है। यह जाना जाए कि कहीं डार्कनेट या डार्क वेब कही जाने वाली यह स्याह दुनिया इंटरनेट के उजले पक्ष पर भारी तो नहीं पड़ने लगी है। और डार्कनेट के जरिये चलने वाले काले कारोबारों पर क्या कोई रोकथाम लगाना मुमकिन होगा।

जब हम डार्कनेट या डार्क वेब के बारे में जानकारी हासिल करने का प्रयास करते हैं, तो बेहद चौंकाने वाली पहली जानकारी यह सामने आती है कि जिस इंटरनेट से हमारा रोजाना सामना होता है, वह इसकी अंधेरी दुनिया के मुकाबले रत्ती भर भी नहीं है। तथ्य बताते हैं कि इस समय इंटरनेट की दुनिया ऐसी करीब 1.86 अरब वेबसाइटों पर निर्भर है जो तमाम किस्मों की गतिविधियां संचालित करती है। इन अरबों वेबसाइटों के बल पर चलने वाले इंटरनेट के बारे में जब यह दावा किया जाता है कि डार्कनेट के सामने इस उजले इंटरनेट की हस्ती महज चार प्रतिशत है, तो हमें इसकी तुच्छता का अहसास होने लगता है। दावा है कि सर्च इंजन गूगल जिस वेब-दुनिया में झांक नहीं पाता है, वह आभासी सतह पर दिखने वाले इंटरनेट (सर्फेस वेब) के मुकाबले पांच सौ प्रतिशत तक बड़ा है तो यह तथ्य हमें हैरानी से भर देता है।

इंटरनेट की इस अंधेरी दुनिया को कई नाम दिए जाते रहे हैं। जैसे डीप वेब, डार्क वेब, हिडेन विकी, इनविजिबल वेब इत्यादि। हम जिस स्वाभाविक यानी सर्फेस वेब से परिचित रहे हैं और जिसे गूगल, बिंग या याहू द्वारा सर्च करते हुए इंटरनेट पर देखते रहे हैं, उससे अलग डार्कनेट या डार्क वेब की दुनिया सबसे पहले तो इस मायने में अलग है कि इसे गूगल आदि स्थापित सर्च इंजनों से खोजा नहीं जा सकता। इसकी बजाय डार्कनेट से जुड़ी दुनिया को एक गुमनाम साफ्टवेयर- टार (टीओआर) ब्राउजर के जरिये खंगाला जाता है जो डाट ओनियन (.ओनियन) के लिंक्स के माध्यम से दिखनी शुरू होती है। दिलचस्प यह है कि टार ब्राउजर पर अपना खाता बनाने के लिए व्यक्ति को अपनी पहचान के पुख्ता प्रमाण देने होते हैं, लेकिन इसका विरोधाभास यह है कि इसमें प्रवेश करने वाले लोगों की पहचान यानी निजता, इंटरनेट सुरक्षा, कंप्यूटर नेटवर्क, अकांउट और पैसा भी दांव पर लगा रहता है। यानी उसमें कभी भी कोई भी हैकर सेंध लगा सकता है। फिर भी विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि अगर एडवांस्ड वीपीएन सेवाओं के माध्यम से टार ब्राउजर को खोला जाए तो डार्कनेट में दाखिल होने पर भी यूजर की सुरक्षा काफी हद तक सुनिश्चित हो जाती है। यहां एक बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर इंटरनेट का इस अंधेरी दुनिया का सृजन किसने और क्यों किया। क्या उसका काम हमें दिखने वाले इंटरनेट से नहीं चल रहा था या उसका मकसद असल में इंटरनेट के साम्राज्य के लिए एक नई चुनौती खड़ी करना था।