देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने न्यायपालिका की चुनौतियों का जिक्र किया। लंबित मामले देश की न्यायपालिका के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है। CJI ने कहा, “पूरे भारत में, कानूनी पेशे की संरचना सामंती है। महिलाओं के लिए एक लोकतांत्रिक और योग्यता आधारित प्रविष्टि की आवश्यकता है।” चीफ जस्टिस ने आगे कहा कि कई अदालतों में तो महिलाओं के लिए शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने न्यायपालिका की चुनौतियों और महिलाओं के लिए मुश्किल हालातों पर अपनी बात रखी। महिला और समाज के पिछड़े समुदायों से ताल्लुक रखने वाले वर्ग से जजों की कमी पर चिंता जताते हुए चीफ जस्टिस ने कहा, “फीडिंग पूल जो यह निर्धारित करता है कि कौन न्यायपालिका में प्रवेश करेगा, काफी हद तक कानूनी पेशे की संरचना पर निर्भर करता है, वह सामंती और पितृसत्तात्मक है और महिलाओं को समायोजित नहीं करता है।” न्यायपालिका में महिलाओं की चुनौतियों पर बात करते हुए सीजेआई ने कहा कि कई अदालतों में महिलाओं के लिए शौचालय तक नहीं है। इसके अलावा न्यायपालिका की सबसे बड़ी चुनौती लंबित मुकदमों की संख्या है। सोशल मीडिया पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि “अक्सर यह भेद करना बहुत आसान नहीं होता है कि नीति के दायरे में क्या है और वैधता के दायरे में क्या है। जज भी इस नई विधा से पूरी तरह से वाकिफ नहीं हैं।” सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “महामारी के दौरान जब हमने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अदालतों में सुनवाई शुरू की तो कई महिला वकील सामने आईं। लाइव स्ट्रीमिंग ने महिला वकीलों को उपयोगी बनाया।” CJI ने कहा, ‘हमें अब कानूनी पेशे में महिलाओं के लिए पहुंच बनाने की जरूरत है।”