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खुद के साथ दूसरों को भी कर रहे परेशान, कुछ जिद्दी किसान


हापुड़ । अपना भी नुकसान और हर कोई परेशान परंतु फिर भी बाज आने को तैयार नहीं हैं जिद्दी किसान।  जी आप सही समझें हम बात कर रहे उन किस्सनों की जो फसलों के अवशेष जलाने की कुप्रथा को खत्म नहीं होने दे रहे है। गन्ना, गेहूं और धान उत्पादक क्षेत्रों में कटाई के उपरांत खेतों में शेष बचने वाली पराली, पत्ती और गन्ने की जड़ों को आग लगाकर फूंकने की कुप्रथा सदियों से चली आ रही है। वैज्ञानिक ढंग में खेती करने वाले किसानों की संख्या बेहद सीमित हैं जो इस कुप्रथा से बच रहे हैं, परंतु रूढ़िवादी ढंग में खेती करने वाले किसान इस कुप्रथा को अपने लिए सुविधाजनक मानते आ रहे हैं। परंतु उन्हें यह पता नहीं है कि इससे मिट्टी का जैविक कार्बन और उसमें रहने वाले लाभकारी जीवाणु भी जलकर राख हो जाते हैं। जिससे अगली फसल का उत्पादन प्रभावित होने के साथ ही वायुमंडल में प्रदूषण की भरमार होने से आम जन मानस को सर्दी की शुरूआत के दौरान खुली हवा में सांस तक लेना चुनौती हो रहा है।

मुरादनगर कृषि अनुसंधान केंद्र के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ.अरविंद यादव ने बताया कि रूढि़वादी परंपरा के चलते फसलों की कटाई के बाद किसान पत्ती समेत शेष बचे अवशेष को आग लगाकर फूंक डालते हैं, जो उन्नत पैदावाार के लिए बेहद घातक होने के साथ ही प्रदूषण बढ़ने का प्रमुख कारण बना हुआ है। क्योंकि आग लगने से मिट्टी के जैविक कार्बन और लाभकारी जीवाणु नष्ट हो जाते हैं, जबकि नाइट्रोजन सीकेशन की मात्रा भी बेहद कम हो जाती है।

उन्होंने बताया कि फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए मिट्टी के लाभकारी जीवाणुओं को बचाने के उद्देश्य से शासन ने कड़े कानून बनाए हुए हैं, जिसमें फसलों के अवशेषों को आग लगाकर फूंकने वालों से ढाई हजार से लेकर 17 हजार का अर्थदंड वसूलने के साथ ही आईपीसी की धारा 278, 285 और एनजीटी एक्ट की धारा 24 के अंतर्गत संबंधित थाने में प्राथमिकी दर्ज कराकर गिरफ्तारी भी की जाएगी।