बिहारशरीफ (नालंदा)। दुर्गापूजा समाप्त हो चुका है और अब दीपावली एवं छठ की तैयारी शुरू हो चुकी है। कार्तिक माह की अमावस से शुरू हो रहा दोनों पावन त्योहार मिला-जुलाकर एक पखवारे तक चलेगा। कार्तिक पूर्णिमा यानि देव दीवाली के साथ त्योहारों का यह सिलसिला समाप्त होगा। इस पर्व की तैयारी शुरू हो चुकी है। कहा जाय तो त्योहारों की तैयारी में हर लोग जुट गये हैं। घरों की रंगाई-पुताई और साफ-सफाई का जहां दौर चल रहा है वहीं दीपावली एवं छठ को लेकर मिट्टी के दीप से लेकर बर्तन, चूल्हा एवं खिलौने का निर्माण कार्य जोर पकड़ चुका है।
यह सच है कि समय के साथ-साथ काफी बदलाव आया है। दीपावली के दीपों की जगह मोमबत्ती और रंग-बिरंगे लाईट ले चुका है। लेकिन आज भी दीपों की महत्ता कम नहीं हुई है। आबादी बढ़ी है। इसके साथ ही रोजगार नहीं मिलने से परेशान कुम्हारों ने धंधा बदला है। हालात यह है कि जो गिने-चुने लोग इस धंधे में बचे हैं वह मांग के अनुरूप बर्तन, दीप और चूल्हा बनाने की तैयारी में अभी से लगे हुए हैं। सुबह से लेकर देर रात तक निर्माण कार्य चल रहा है।
चाहे गांव की पगडंडी हो या शहर की सड़क। अभी सहजतापूर्वक मिट्टी के चूल्हे बनते नजर आ जा रहे हैं। गांव-ग्रामों में तो लोग स्वयं ही मिट्टी का चूल्हा बना लेते हैं। लेकिन शहरों में आज भी कुंभकार ही चूल्हा का निर्माण करते हैं। इसके साथ ही कुंभकारों के पास मिट्टी के विभिन्न प्रकार के बर्तन तथा दीप बनाने का कार्य जोर-शोर से चल रहा है। वहीं कुंभकार दीया का निर्माण कर शहर में बेचने के लिए पहुंच रहे हैं। काफी संख्या में महिलाएं एवं बच्चे टोकरी में दीया लेकर बेचने के लिए पहुंचने लगे हैं।
सनातन धर्माबलंबियों द्वारा छठ पर्व सबसे पवित्रता के साथ मनाया जाता है। यही कारण है कि इस पर्व में लोग नए चूल्हा और नए बर्तन का उपयोग करते हैं। मिट्टी के बर्तन का प्रयोग आज भी लोग इस पर्व में करते हैं। यही कारण है कि इन दिनों बर्तन का निर्माण जोर-शोर से हो रहा है। यही हाल दीपावली के दीपों का भी है।