नई दिल्ली, । भारत पहुंचे नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की भारत यात्रा काफी अहम मानी जा रही है। इस यात्रा के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू से भी मुलाकात की। नेपाल और भारत के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात के कूटनीतिक क्षेत्र में कई मायने निकाले जा रहे हैं। इस मुलाकात के दौरान कई अहम समझौते हुए। इन समझौतों से दोनों देशों के बीच कड़वाहट पर भी विराम लग सकता है। खास बात यह है कि इस यात्रा पर चीन की पैनी नजर है। गौरतलब है कि नेपाली प्रधानमंत्री की यात्रा ऐसे समय हो रही है, जब चीन काडमांडू पर डोरे डालने में लगा है। हाल ही में भारत और नेपाल के संबंधों में कई बार असहजता की स्थिति उत्पन्न हुई। इसके लिए पूरी तरह से चीन जिम्मेदार था। भारत इन सभी कोशिशों को नेपाल की चीन से बढ़ती नजदीकी के रूप में देख रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत और नेपाल के बीच सदियों पुराने रिश्ते पर चीनी चाल भारी पड़ रही है? देउबा की इस यात्रा के क्या मायने हैं? कैसे रहे हैं भारत-नेपाल के रिश्ते? नेपाल में कैसे बढ़ा है चीन का दबदबा?
नेपाल-भारत उतार चढ़ाव वाले रिश्ते
1- नवंगर, 2019 को भारत ने एक मानचित्र प्रकाशित किया था, जो जम्मू कश्मीर तथा लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में दर्शाता है। इसी मानचित्र में कालापानी को भी भारतीय क्षेत्र के रूप में दर्शाया गया था। इस मानचित्र ने भारत-नेपाल के बीच एक पुराने विवादों को हरा कर दिया था। इसके साथ भारतीय फिल्मों में नेपाली महिलाओं को लेकर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी से भी नेपाल ने नाराजगी व्यक्त की थी।
2- वर्ष 2017 में नेपाल चीन के वन बेल्ट, वन रोड परियोजना में शामिल हुआ। हालांकि, भारत नेपाल पर इस परियोजना में शामिल नहीं होने का दबाव डाल रहा था। भारत का यह दबाव नेपाल को रास नहीं आया। भारत-नेपाल के रिश्तों में खटास तब आई, जब वर्ष 2015 में नेपाली संविधान अस्तित्व में आया। भारत द्वारा नेपाली संविधान का उस रूप में स्वागत नहीं किया गया जिस रूप में नेपाल को आशा थी।
3- नवंबर, 2015 जेनेवा में भारतीय प्रतिनिधित्व द्वारा नेपाल में राजनीतिक फेरबदल को प्रभावित करने के लिए मानवाधिकार परिषद के मंच का कठोरतापूर्वक उपयोग किया गया, जबकि इससे पहले नेपाल के आंतरिक मामलों को लेकर भारत द्वारा कभी भी खुलकर कोई टिप्पणी नहीं गई थी। भारत का रुख मधेसियों को नेपाल में नागरिकता का अधिकार दिलाना था। इनमें लाखों मधेसियों ने साल 2015 में नागरिकता को लेकर व्यापक आंदोलन चलाया था। नेपाल सरकार का ऐसा आरोप है कि मधेसियों के समर्थन में भारत सरकार ने उस समय नेपाल की आर्थिक घेराबंदी की थी।