- जिलाधिकारी आदर्श सिंह ने मस्जिद और उसके परिसर में बने कमरों को ‘अवैध निर्माण’ करार देते हुए एक बयान में कहा कि इस मामले में संबंधित पक्षकारों को पिछली 15 मार्च को नोटिस भेजकर स्वामित्व के संबंध में सुनवाई का मौका दिया गया था.
लखनऊ/बाराबंकी: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने बाराबंकी जिले की रामसनेहीघाट तहसील में स्थित एक सदी पुरानी मस्जिद को कथित रूप से ढहाये जाने पर सख्त नाराजगी जाहिर की है. साथ ही सरकार से इस वारदात के जिम्मेदार अफसरों को निलंबित कर मामले की न्यायिक जांच कराने और मस्जिद के पुनर्निर्माण की मांग की. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यवाहक महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने एक बयान जारी कर कहा कि “बोर्ड ने इस बात पर नाराजगी का इजहार किया है कि रामसनेहीघाट तहसील में स्थित गरीब नवाज मस्जिद को प्रशासन ने बिना किसी कानूनी औचित्य के सोमवार रात पुलिस के कड़े पहरे के बीच शहीद कर दिया है.”
रहमानी ने कहा, “यह मस्जिद 100 साल पुरानी है और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में इसका इंद्राज भी है. इस मस्जिद के सिलसिले में किसी किस्म का कोई विवाद भी नहीं है. मार्च के महीने में रामसनेहीघाट के उप जिलाधिकारी ने मस्जिद कमेटी से मस्जिद के आराजी से संबंधित कागजात मांगे थे. इस नोटिस के खिलाफ मस्जिद प्रबंधन कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी और अदालत ने समिति को 18 मार्च से 15 दिन के अंदर जवाब दाखिल करने की मोहलत दी थी, जिसके बाद एक अप्रैल को जवाब दाखिल कर दिया गया, लेकिन इसके बावजूद बगैर किसी सूचना के एकतरफा तौर पर जिला प्रशासन ने मस्जिद शहीद करने का जालिमाना कदम उठाया है.”
मस्जिद की जमीन पर कोई दूसरी तामीर करने की कोशिश न की जाए- मौलाना सैफुल्लाह
मौलाना सैफुल्लाह ने बयान में कहा, “हमारी मांग है कि सरकार हाईकोर्ट के किसी सेवारत न्यायाधीश से इस वाकये की जांच कराए और जिन अफसरों ने यह गैरकानूनी हरकत की है उनको निलंबित किया जाए. साथ ही मस्जिद के मलबे को वहां से हटाने की कार्रवाई को रोककर और ज्यों की त्यों हालत बरकरार रखे. मस्जिद की जमीन पर कोई दूसरी तामीर करने की कोशिश न की जाए. यह हुकूमत का फर्ज है कि वह इस जगह पर मस्जिद तामीर कराकर मुसलमानों के हवाले करे.”
इस बीच, जिलाधिरी आदर्श सिंह ने मस्जिद और उसके परिसर में बने कमरों को ‘अवैध निर्माण’ करार देते हुए एक बयान में कहा कि इस मामले में संबंधित पक्षकारों को पिछली 15 मार्च को नोटिस भेजकर स्वामित्व के संबंध में सुनवाई का मौका दिया गया था. लेकिन परिसर में रह रहे लोग नोटिस मिलने के बाद फरार हो गए जिसके बाद तहसील प्रशासन ने 18 मार्च को परिसर पर कब्जा हासिल कर लिया.