महोदय,-इन दिनों जहां एक ओर देशके अधिकांश हिस्सोंमें भारी गर्मी पड़ रही है, वहीं राजधानी दिल्लीके अलावा पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलगांना, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा आदि राज्य पानीकी भारी कमीसे जूझ रहे हैं। दिल्ली सरकार द्वारा पड़ोसी राज्योंसे पानीकी गुहार लगायी जा रही है वहीं स्वयं पानीकी कमीसे जूझ रहे हिमाचलके मुख्य मंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खूने कहा है कि हिमाचलकी जरूरतको पूरा करनेके बाद राज्य सरकार, चाहे दिल्ली हो या कोई अन्य राज्य, सभीको पानी देनेके लिए तैयार है। पानीकी कमीका एक बड़ा कारण जनसंख्याकी अत्यधिक वृद्धि भी है। शहरीकरणके बढ़ते दबावके कारण घरोंमें पानीकी खपत बढ़ गयी है। कृषि एवं उद्योगोंमें भी भूजलका अत्यधिक दोहन किया जा रहा है। भारतमें जल संकटके कारण आपसमें जुड़े हुए हैं और मिलकर देशमें पानीकी कमीको बढ़ावा दे रहे हैं। पानीका लगभग ७० प्रतिशत हिस्सा सिर्फ कृषिमें इस्तेमाल हो जाता है। कुएं एवं बोरवैल सूखते जा रहे हैं। औद्योगिक कचरा, तरह-तरहके कैमिकल, सीवेज, घरेलू अपशिष्ट, जल स्रोतोंमें अथवा उनके आसपास डम्प किये जानेसे न केवल पानीकी गुणवत्ता खराब हो रही है, बल्कि वहांसे मिलनेवाला पानी भी घट रहा है। इसके लिए जहां रसोई घर और बाथरूमके पानीका फिरसे इस्तेमाल करने और वाटर रीसाइकिं्लगके लिए ट्रीटमैंट प्लांटोंका निर्माण करना जरूरी है वहीं वृक्षारोपण और वन संरक्षणके अलावा वाटर हार्वैसिं्टग भी बहुत जरूरी है। पानीके भंडारण और वाटर हार्वेस्टिंगमें ब्राजील दुनियामें सबसे आगे है। इसके बाद सिंगापुर, चीन, जर्मनी और आस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशोंका स्थान है, जहां घरोंसे लेकर जलाशयोंतक वर्षाके पानीका बेहतरीन तरीकेसे इस्तेमाल किया जा रहा है। जापान या जर्मनी आदि देशोंमें अनिवार्य रूपसे प्रत्येक घरके बाहर पानीकी हार्वेस्टिंग करनेका नियम लागू है जबकि इसके विपरीत हमारे देशमें कहीं भी घरोंमें पानीकी हार्वेस्टिंगकी व्यवस्था नहीं है। किसी भी घरमें वर्षाके पानीके संग्रहणके लिए मकानका कुछ हिस्सा खुला नहीं छोड़ा गया है जो पानी धरतीके नीचे जाकर पानीका स्तर ऊंचा उठानेमें सहायता करे। अत: पानीकी हार्वेस्टिंग नीति बनानी होगी। जल संकटका सबसे बड़ा कारण तो देशमें नदी जल बंटवारेकी सही नीतिका न होना है जिसमें संशोधन करनेकी आवश्यकता है। हरियाणा और पंजाबमें भूजल स्तर मुख्यत: धानकी खेतीके कारण चिन्ताजनक हदतक गिरता जा रहा है। अत: इन राज्योंमें धानकी फसलकी बुवाईके रुझानको बदलना होगा। पंजाब और हरियाणा भौगोलिक दृष्टिसे धानकी खेतीके लिए उपयुक्त राज्य नहीं हैं। धानकी खेतीकी शुरुआत ६० के दशकमें कर तो दी गयी परंतु बुनियादी तौरपर जो समुद्रसे लगते सीमावर्ती क्षेत्र हैं वहां तो धानकी खेती करना बनता है परंतु पंजाब और हरियाणामें तो पानी ही नहीं होनेके कारण यहां धानकी खेती करनेका कोई औचित्य दिखाई नहीं देता। अत: इन दोनों ही राज्योंके किसानोंको धानकी बजाय अन्य कम पानी पीने वाली फसलोंकी खेती करनेके विकल्पोंको चुनना चाहिए। पंजाबमें अधिक उद्योगोंको आ•ॢषत करनेकी आवश्यकता है ताकि किसानोंकी कृषिपर निर्भरता कम होनेसे पानीके संकटको कम करनेमें कुछ सहायता मिल सके। ऐसा न करनेपर वह दिन दूर नहीं जब लोगोंको पानीकी एक-एक बूंदके लिए तरसनेकी नौबत आ जायगी। -आर.पी. सिंह,
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