चुनावी रेवड़ियों पर रोक लगाने की दायर याचिका पर सुनवाई गुरुवार को
भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने जनहित याचिका दाखिल कर मुफ्त रेवड़ियों का मुद्दा उठाया है। साथ ही मुफ्त रेवडि़यां बांटने वाले राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। इसमें पार्टी का चुनाव चिन्ह जब्त करना और उसकी मान्यता खत्म करना शामिल है। तीन अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका का संज्ञान लेते हुए मुफ्त रेवडि़यों के प्रभाव पर विचार करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने के संकेत दिये थे। एक हफ्ते के भीतर सभी संबंधित पक्षों से इस संबंध में सुझाव भी मांगे थे।
आयोग ने कहा, कोर्ट की टिप्पणी से छवि को नुकसान पहुंचा
चुनाव आयोग ने हलफनामे में कहा है कि पिछले सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से उसको लेकर की गई मौखिक टिप्पणी से उसकी छवि को भरपाई न होने वाला नुकसान पहुंचा है। आयोग ने आदर्श आचार संहिता के संबंध में दिए गए कोर्ट के आदेश अक्षरश: पालन किया है। गाइडलाइन तय की हैं, जो आदर्श आचार संहिता का हिस्सा हैं। उसमें कहा गया है कि राजनीतिक दल चुनावी वादों की तार्किकता बताएंगे और यह भी बताएंगे कि उन वादों को पूरा करने के लिए धन कहां से आएगा। इसके बावजूद ऐसा पेश किया गया जैसे कि मुफ्त रेवड़ियों के मामले को लेकर आयोग गंभीर नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था मौखिक टिप्पणी में
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस बारे में आए कोर्ट के पूर्व फैसले को नौ वर्ष बीत गए हैं लेकिन चुनाव आयोग ने कुछ नहीं किया। कोर्ट ने सुब्रमण्यम बाला जी बनाम तमिलनाडु मामले में 2013 में दिए फैसले की बात की थी। उस फैसले में कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा था कि वह सभी राजनीतिक दलों से विचार विमर्श कर इस बारे में गाइड लाइन तय करे।
विशेषज्ञ समिति की सिफारिश से आयोग को होगा फायदा
प्रस्तावित विशेषज्ञ समिति से अलग रहने की इच्छा जताने वाले चुनाव आयोग ने भी कहा है कि समिति में सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं, नियामक, नीति निर्धारक संस्थाएं, वित्त, बैंकिंग सामाजिक न्याय, राजनीतिक दल आदि के प्रतिनिधि शामिल होंगे। विशेषज्ञ समिति के सुझावों से आयोग को बहुत फायदा होगा और चुनावी प्रक्रिया को स्वच्छ रखने के लिए मौजूदा गाइड लाइन को और मजबूत करने में मदद होगी।
मुफ्त रेवड़ियों की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं
आयोग ने हलफनामे में यह भी कहा है कि अभी तक मुफ्त रेवड़ियों की कोई स्पष्ट कानूनी परिभाषा नहीं है। यह तय करना मुश्किल है कि किसे अतार्किक रेवड़ियां कहा जाए और किसे नहीं। इस मुद्दे पर व्यापक ढंग से समग्र विचार किए जाने की जरूरत है। मुफ्त रेवडि़यों का परिस्थितियों के मुताबिक समाज, अर्थव्यवस्था और समानता पर अलग अलग प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए आपदा या महामारी के समय जीवन रक्षक दवाएं, भोजन, पैसा आदि देना जीवन और आर्थिक मदद के लिए जरूरी हो सकता है लेकिन सामान्य समय में इसे मुफ्त रेवड़ियां कहा जा सकता है।