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हिंद प्रशांत क्षेत्र में 13 देश एक साथ मिलकर चीन को देंगे मात,


नई दिल्‍ली । एशिया में चीन के बढ़ते आर्थिक प्रभाव के बीच टोक्यो में 13 देशों के इंडो-पैसिफिक इकोनमिक फ्रेमवर्क (आइपीईएफ) नाम के नए आर्थिक मंच की घोषणा की गई। इसमें अमेरिका, भारत, जापान और आस्ट्रेलिया के अलावा प्रमुख आसियान देश भी शामिल हैं। चीन ने इसे इकोनमिक नाटो बताया है। वह क्‍वाड को भी एशियाई नाटो कह चुका है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या है आइपीईएफ? यह कैसे  चीन की विस्तारवादी नीतियों पर लगाम लगाएगा। इसके भारत से क्‍या लिंक है।

 

1- क्‍वाड के बाद आइपीईएफ के माध्यम से अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी व्यापारिक और रणनीतिक उपस्थिति को और मजबूत करेगा। विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति अमेरिका के लिए ऐसा करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि विश्व की नंबर दो अर्थव्यवस्था यानी चीन एशिया में बहुत तेजी से अपने पांव पसार रहा है। मंच के गठन को लेकर कहा गया है कि कोरोना काल में सप्लाई चेन बाधित होने पर चीन ने अपनी शर्ते थोपीं थी। अब विश्व इसके लिए ठोस विकल्प तैयार करना चाहता है और आइपीईएफ इसी क्रम में उठाया गया पहला बड़ा कदम है।

2- दरअसल, अमेरिका पहले ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) के माध्यम से एशिया में अपने व्यापारिक और कूटनीतिक हित साधता था, लेकिन 2017 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को इससे अलग कर लिया था। इसकी वजह राजनीतिक है, क्योंकि 2001 में चीन के डब्ल्यूटीओ में शामिल होने के बाद से अमेरिका में निर्माण क्षेत्र में नौकरियों में संकट आया था। अमेरिकी कंपनियों ने सस्ते श्रम के कारण चीन में फैक्टियां खोली थीं और अमेरिका में निर्माण क्षेत्र में रोजगार कम हो गए थे। इसका अमेरिका में विरोध हुआ था और ट्रंप का राजनीतिक कद बढ़ने के पीछे एक वजह यह मुद्दा भी रहा है।

3- अब अमेरिका को चीन के बढ़ते वर्चस्व के बीच एशिया में अपनी पैठ भी मजबूत करनी थी और अमेरिकी लोगों के विरोध के कारण वह टीपीपी में भी शामिल नहीं हो सकता था। इसी कारण बाइडन ने आइपीईएफ का रास्ता चुना है। अमेरिका के टीपीपी से हटने के बाद से चीन का रुतबा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ा है। चीन टीपीपी का सदस्य है। टीपीपी के अलावा एक और आर्थिक सहयोग मंच क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) भी है, यह हिंद प्रशांत क्षेत्र में सक्रिय है और चीन इसमें भी अग्रणी भूमिका में हैं। अमेरिका इसका सदस्य नहीं है और भारत ने कुछ समय पहले ही इसकी सदस्यता से खुद को अलग किया है।

4- अमेरिका मानता है कि आरसीईपी से चीन ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी आर्थिक स्थिति बहुत सशक्त कर ली है। एक अन्य आर्थिक मंच भी इस क्षेत्र में है जिसे कांप्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फार ट्रांसपैसिफिक (सीपीटीपीपी) कहा जाता है। यह टीपीपी का ही नया रूप है और चीन ने इसकी सदस्यता के लिए भी पहल कर दी। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के इन्हीं सब कदमों ने अमेरिका व अन्य साथी देशों को आइपीईएफ बनाने की दिशा में अग्रसर किया।

5- आइपीईएफ के माध्यम से अमेरिका की पहुंच पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों तक बढ़ेगी। वह नए सिरे से अपनी व्यापारिक शक्ति का विस्तार कर सकेगा। सदस्य देशों ने आइपीईएफ को लेकर सकारात्मक रुख दिखाया है, लेकिन माना जा रहा है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के लिए इसके लाभ अलग-अलग हो सकते हैं। निवेश और व्यापार के रूप में दक्षिण एशियाई देशों को इस नए मंच का लाभ मिल सकता है। अमेरिका इस मंच का प्रयोग कर एक बड़े बाजार के रूप में वियतनाम और चिप उद्योग में मजबूत मलेशिया के माध्यम से सप्लाई चेन को सशक्त कर सकता है। इससे चीन का सप्लाई चेन में वर्चस्व कम हो सकता है।