नई दिल्ली। कांग्रेस के पास फिलहाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे का जवाब तो नहीं ही है, गृह मंत्री अमित शाह की रणनीति से पार पाना भी बहुत मुश्किल है।
यह शाह की मेहनत, सधी हुई राजनीति और नेतृत्व का ही कमाल है कि छत्तीसगढ़ में निरुत्साहित भाजपा संगठन और मध्य प्रदेश में भीषण अंदरूनी कलह से जूझ रही भाजपा इस बार अपने अब तक के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तक पहुंच गई।
चुनावों के एक और दौर में भाजपा की सफलता के तौर-तरीकों को समझना है तो छत्तीसगढ़ के नतीजों पर गौर करना होगा, क्योंकि मध्य प्रदेश के साथ कांग्रेस के लिए रेवड़ी संस्कृति की प्रयोगशाला बने इस राज्य को भाजपा अपने लिए कठिन चुनावी चुनौती वाला मान रही थी।
इस राज्य में पार्टी ने दो-ढाई महीने में स्थिति एकदम उलट दी और इसकी शुरुआत अमित शाह के दौरों ने की, क्योंकि यही वह समय था, जब पार्टी ने एक-एक सीट के लिए अलग-अलग रणनीति और प्रत्याशियों के चयन का सिलसिला शुरू किया।
अलग रणनीति और सटीक टाइमिंग का इस्तेमाल
मध्य प्रदेश से एकदम अलग परिस्थितियों में छत्तीसगढ़ का नतीजा अपने नैरेटिव पर लड़ाई को मोड़ने, सटीक टाइमिंग और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील के भरपूर इस्तेमाल की देन है।
इसका समग्र प्रभाव यह हुआ कि तीनों ही राज्यों में उसके सामने टक्कर में खड़ी कांग्रेस का मध्य प्रदेश में मनोबल टूट गया, छत्तीसगढ़ में वह सन्न रह गई और राजस्थान में देखते-देखते बाजी हाथ से फिसलते देखती रही।
कांग्रेस की गुटबाजी से बढ़ा संकट
अगर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की ही बात करें तो इन दोनों राज्यों के हालात भिन्न थे। एक जगह (छत्तीसगढ़ में) नेतृत्व के अभाव का संकट था तो दूसरे राज्य में नेतृत्व के अलावा बने कई गुट।
यहां तक कि जिलों तक में उठती अलग-अलग आवाजों ने पार्टी की मुश्किल बढ़ा दी थी। इससे निपटने के लिए शाह ने गहरी राजनीतिक समझ, परिपक्वता और साहस दिखाया।
छत्तीसगढ़ में सामूहिक नेतृत्व की बात हुई, पार्टी के लोगों में जीत का भरोसा भरा, जबकि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान सरीखे नेता को भी एक बल्लेबाज की तरह खेलने के लिए कहा गया।
प्रधानमंत्री की गारंटियों ने लिखी आगे की पटकथा
कमान प्रधानमंत्री ने संभाली और उनकी गारंटियों के बाद किसी को किसी बात पर संदेह नहीं रहा। मध्य प्रदेश का मैदान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की निगरानी के साथ ही केंद्रीय मंत्रियों भूपेन्द्र यादव और अश्विनी वैष्णव की रात-दिन की मेहनत से जीता गया।
शाह ने लगातार छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की स्थिति का जायजा लिया। इसी अनुसार रणनीति तय की। बूथ स्तर से लेकर भोपाल तक कार्यकर्ताओं में यह विश्वास पैदा किया कि भाजपा फिर से सरकार बना सकती है।
सभी लोगों को मैदान में उतारा और खुद भी कई दर्जन रैलियां और रोड शो किए। मध्य प्रदेश में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, अश्विनी वैष्णव, संगठन मंत्री शिवकुमार जैसे लोगों ने रात-दिन पसीना बहाया और नतीजा सामने आ गया।
बघेल पर भ्रष्टाचार के आरोप, मंत्री भी मुकाबले में लड़खड़ाए
छत्तीसगढ़ में 55-60 सीटें जीतने का दावा कर रही कांग्रेस के मंत्री भी अगर मुकाबले में झूल गए तो इसका सबसे बड़ा कारण सही स्थितियां समझ पाने में उसकी नाकामी ही है।
पिछली बार 70 सीटें जीतने वाली पार्टी ने 22 विधायकों के टिकट तो काटे, लेकिन उसे यह जरा भी अंदाजा नहीं था कि सीधे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप, लचर कानून एवं व्यवस्था, धर्मांतरण का मुद्दा, नक्सल प्रभावित इलाकों के लोगों में असंतोष, उद्योगों के विरुद्ध जानबूझकर बनाए जा रहे खराब वातावरण और भर्ती में धांधली को लेकर गुस्सा उससे कहीं ज्यादा है, जितना वह समझ रही है।
मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह पर भरोसा
भ्रष्टाचार जमीन पर मुद्दा नहीं था, लेकिन मोदी ने इसे अपनी रैलियों के जरिये बना दिया। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की मशहूर लाड़ली बहन योजना जीत का केवल एक कारण भर है।
यह जीत तमाम फैक्टरों पर आधारित है, जिसमें विकास और सुशासन का भरोसा भी है। यह अनायास नहीं है कि शहरी विकास की तमाम योजनाओं में मध्य प्रदेश के शहर आगे रहते हैं, प्रधानमंत्री आवास योजना ने शहरों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी अपना असर दिखाया है।
केंद्रीय ग्रामीण विकास और जलशक्ति मंत्रालय की योजनाओं में भी मध्य प्रदेश ने उल्लेखनीय प्रगति प्रदर्शित की है। बुनियादी ढांचे के विकास के साथ-साथ मध्य प्रदेश की जनता भी यह महसूस कर रही है कि डबल इंजन सरकारों के अपने फायदे हैं।
राजस्थान भी भाजपा की बाजी पलटने की काबिलियत का प्रमाण
राजस्थान में भाजपा की जीत को वर्षों से जारी ट्रेंड का नतीजा भी कहा जा सकता है, लेकिन यह राज्य भी भाजपा की बाजी पलटने की काबिलियत का प्रमाण है।
एक समय यह माना जा रहा था कि सस्ते सिलेंडर समेत सबसे बड़ी बीमा योजना जैसे कार्यक्रमों के जरिये अशोक गहलोत सरकार सत्ता विरोधी लहर को शांत कर सकती है और मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं घोषित करने के कारण भाजपा को नुकसान उठाना पड़ेगा, लेकिन राजस्थान में भी नेतृत्व के कठिन प्रश्न को अमित शाह ने जिस तरह नियंत्रित रखा और बाकी दावेदारों के एकजुट प्रयासों को सुनिश्चित किया, वह और किसी पार्टी में शायद ही संभव हो सके।
पार्टी ने हाल के वर्षों में इस्लामी कट्टरपंथ की सबसे बड़ी घटना उदयपुर में कन्हैया लाल की आइएस शैली में की गई हत्या को पूरी ताकत से चुनावी विमर्श में लाने की कोशिश की और उसे इसमें सफलता भी मिली। तीनों ही राज्यों में पार्टी ने क्षेत्रीय जरूरतों के साथ ही केंद्रीय दृष्टिकोण को आसानी और कारगर तरीके से मिलाया।