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अमेरिकी सांसद का दावा- पाकिस्तान को बताया तालिबानी आतंकवादियों का सुरक्षित ठिकाना


अमेरिका के एक वरिष्ठ सांसद ने कहा है कि अफगानिस्तान में तालिबान के जड़ें जमाने के पीछे वजह पाकिस्तान में मौजूद उसकी सुरक्षित पनाहगाहें हैं। एक दिन पहले ही वाशिंगटन ने युद्धग्रस्त देश से 11 सितंबर तक अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाने की योजना की घोषणा की है।

‘सीनेट आर्म्ड सर्विस कमेटी’ के अध्यक्ष जैक रीड ने बृहस्पतिवार को संसद में कहा, ”तालिबान के सफल होने में बहुत बड़ा योगदान इस तथ्य का है कि तालिबान को पाकिस्तान में मिल रही सुरक्षित पनाहगाह को खत्म करने में अमेरिका विफल रहा है।”

हाल के एक अध्ययन का हवाला देते हुए रीड ने कहा कि पाकिस्तान में तालिबान की सुरक्षित पनाहगाह होना और इंटर सर्विसेस इंटेलिजेंस (आईएसआई) जैसे संगठनों के जरिए वहां की सरकार से समर्थन मिलना तालिबान के युद्ध को जारी रखने के लिए आवश्यक है और सुरक्षित पनाहगाहों को नष्ट नहीं कर पाने की अमेरिका की विफलता इस युद्ध में वाशिंगटन की सबसे बड़ी गलती है।

उन्होंने कहा, ”जैसा कि अफगान स्टडी समूह (कांग्रेस के निर्देश के तहत कार्यरत) ने कहा कि आतंकवाद के लिए ये पनाहगाह जरूरी हैं। इसके अलावा पाकिस्तान की आईएसआई ने अवसरों का फायदा उठाने के लिए अमेरिका के साथ सहयोग करते हुए तालिबान की मदद की।” रीड ने कहा कि 2018 के आकलन के अनुसार पाकिस्तान ने प्रत्यक्ष सैन्य और खुफिया सहयोग प्रदान किया जिसके नतीजतन अमेरिकी सैनिक, अफगान सुरक्षा बल के जवान और नागरिक मारे गये तथा अफगानिस्तान में बहुत तबाही हुई।

उन्होंने कहा, ”तालिबान को यह समर्थन पाकिस्तान द्वारा अमेरिका के सहयोग के विरोधाभासी है। उन्होंने अपने हवाई क्षेत्र और अन्य अवसंरचनाओं के इस्तेमाल की भी अनुमति दी जिसके लिए अमेरिका ने बहुत आर्थिक मदद की है।” रीड ने कहा, ”अफगान स्टडी समूह के अनुसार पाकिस्तान ने दोनों ओर फायदा उठाने की कोशिश की।” उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान इन सबके साथ खुद भी कमजोर हो रहा है और परमाणु हथियार संपन्न होने के कारण यह खतरनाक है।

रीड के मुताबिक, ”इन सबके ऊपर पाकिस्तान का अपने पड़ोसी देश भारत से लंबे समय से संघर्ष चल रहा है और भारत भी परमाणु हथियारों से संपन्न देश है।” सीनेटर ने कहा कि पाकिस्तान और भारत लंबे समय से दक्षिण एशिया में संघर्ष में शामिल रहे हैं।

उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान से अमेरिका और उसके गठबंधन सहयोगियों के सैनिकों की वापसी के फैसले के पीछे एक वजह है कि वे ऐसी अफगान सरकार का गठन नहीं करा सके जो जनता का विश्वास हासिल कर सके और शहरों से परे जाकर सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा न्याय समेत बुनियादी सेवाएं प्रदान कर सके। राष्ट्रपति जो बाइडन ने देश को टेलीविजन से दिये अपने संबोधन में कहा था कि संघर्ष प्रभावित अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों को 11 सितंबर तक वापस बुलाया जाएगा और अमेरिका के सबसे लंबे संघर्ष को खत्म किया जाएगा।