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इंदिरा से बगावत तो सोनिया गांधी से पंगा पवार की पावर वाली पॉलिटिक्स के कई दिलचस्प किस्से..


नई दिल्ली, । शरद पवार… यह एक ऐसा नाम है, जिसके इर्द-गिर्द महाराष्ट्र की राजनीति घूमती है। राज्य से लेकर केंद्र तक उन्होंने अपनी ‘पावर’ दिखाई है। यहां तक कि गांधी परिवार से पंगा लेने में भी उन्होंने परहेज नहीं किया और खुद की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बना ली, जिसे हम एनसीपी के नाम से जानते हैं।

शरद पवार ने एनसीपी का अध्यक्ष पद छोड़ने का किया एलान

दरअसल, हम आज शरद पवार की बातें इसलिए कर रहे हैं कि उन्होंने एनसीपी के अध्यक्ष पद को छोड़ने का एलान किया है। पवार ने दो मई 2023 को मुंबई में अपनी पुस्तक के प्रकाशन के समय एनसीपी का अध्यक्ष पद छोड़ने का एलान किया। उन्हें 10 सितंबर 2022 को पार्टी की कार्यसमिति की बैठक में फिर से अध्यक्ष चुनाव गया था।

राजनीति में 55 साल से सक्रिय हैं पवार

  • शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति में लगभग 55 साल से सक्रिय हैं।
  • उनका पूरा नाम शरदचंद्र गोविंदराव पवार है।
  • उनका जन्म 12 दिसंबर 1940 को पुणे में हुआ।
  • उनके पिता का नाम गोविंदराव पवार और माता का नाम शारदाबाई है।
  • उन्होंने अपनी पढ़ाई पुणे विश्वविद्यालय से सम्बद्ध ब्रिहन महाराष्ट्र कालेज आफ कामर्स से की है।
  • शरद पवार का विवाह प्रतिभा शिंदे से हुआ, जिससे उनकी एक पुत्री सुप्रिया सुले हैं, जो बारामती लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं।
  • उनके भतीजे अजीत पवार उप-मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
  • पवार के छोटे भाई प्रताप पवार मराठी दैनिक ‘सकल’ का संचालन करते हैं।
  • शरद पवार चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे।
  • उन्होंने केंद्र में कृषि और रक्षा मंत्री के रूप में भी काम किया।
  • वे अपना राजनीतिक गुरु महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री यशवंत राव चौहान को मानते हैं।

पवार पहली बार मुख्यमंत्री कब बने?

शरद पवार सबसे पहले 1967 में विधायक बने। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर बारामती विधानसभा क्षेत्र से जीत दर्ज की। इसके बाद 1978 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार बनाई और पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। जब 1980 में इंदिरा गांधी की केंद्र की सत्ता में वापसी हुई तो उन्होंने महाराष्ट्र सरकार को बर्खास्त कर दिया।

पवार पहली बार सांसद कब बने?

  • पवार को 1983 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (सोशलिस्ट) का अध्यक्ष बनाया गया। तब वे पहली बार बारामती संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे।
  • इसके बाद जब महाराष्ट्र में 1985 में विधानसभा चुनाव हुए तो उन्होंने संसद सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया और चुनाव में हिस्सा लेकर जीत दर्ज की।
  • इस चुनाव के बाद पवार विधानसभा में विपक्ष के नेता चुने गए।
  • उनकी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (सोशलिस्ट) को 288 में से 54 सीटें मिली थी।

पवार फिर से बने मुख्यमंत्री

  • पवार कांग्रेस से ज्यादा दिन तक दूर नहीं रहे। उन्होंने 1987 में फिर से कांग्रेस में वापसी की।
  • जब जून 1988 में केंद्र की राजीव गांधी की सरकार में महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शंकरराव चौहान को केंद्रीय वित्त मंत्री बनाया गया तो शरद पवार मुख्यमंत्री बनाए गए।
  • 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 48 सीटों में से 28 पर जीत हासिल हुई।
  • इसके बाद फरवरी 1990 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी, फिर भी कांग्रेस 288 सीटों में से 141 सीटें जीतने में सफल रही। हालांकि, उसे बहुमत नहीं मिल सका। इसके बाद पवार को 12 निर्दलीय विधायकों का समर्थन मिला और वे मुख्यमंत्री बने।

प्रधानमंत्री पद के लिए पवार का नाम आया सामने

एक दौर ऐसा भी आया, जब पवार का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए आने लगा। वह साल था-1991। इस साल लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार करते समय प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी गई, जिसके बाद पवार का नाम नरसिम्हाराव और एन डी तिवारी के साथ प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में सामने आया। हालांकि, कांग्रेस ने नरसिम्हाराव को प्रधानमंत्री के रूप में चुना, जबकि पवार रक्षा मंत्री बनाए गए। छह मार्च 1993 में पवार फिर से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। उन्हें यह मौका तत्कालीन मुख्यमंत्री सुधाकरराव नायक के पद छोड़ने के चलते मिला।

 

12वीं लोकसभा में विपक्ष के नेता चुने गए पवार

  • महाराष्ट्र में 1995 में हुए विधानसभा चुनाव में शिवसेना और भाजपा गठबंधन ने 138 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जिसके बाद मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बने।
  • कांग्रेस को केवल 80 सीटों पर जीत मिली थी। पवार 1996 तक विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे। 1996 में लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कर वे संसद पहुंच गए।
  • जब 1998 में मध्यावधि चुनाव हुए तो शरद पवार के नेतृत्व में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने 48 सीटों में से 37 सीटों पर जीत दर्ज की।
  • पवार 12वीं लोकसभा में विपक्ष के नेता चुने गए।

एनसीपी का गठन कब और कैसे हुआ?

  • सन 1999 में जब 12वीं लोकसभा को भंग कर दिया गया तो पवार, तारिक अनवर और पी ए संगमा ने यह आवाज उठाई कि कांग्रेस का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भारत में जन्म लिया होना चाहिए न कि विदेश में।
  • जून 1999 में तीनों ने अलग होकर नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी की स्थापना की। जब 1999 के विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला तो कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर सरकार बनाई।
  • 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद पवार यूपीए गठबंधन का हिस्सा बने, जिसके बाद उन्हें कृषि मंत्री बनाया गया।
  • पवार ने 2012 में एलान किया कि वे 2014 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। हालांकि, वे 2019 में भी लोकसभा चुनाव नहीं लड़े थे।

क्रिकेट से खास लगाव

पवार का राजनीति के साथ-साथ क्रिकेट से भी खासा लगाव है। वे 2005 से लेकर 2008 तक बीसीसीआई के अध्यक्ष रहे। इसके बाद 2010 से लेकर 2012 तक उन्होंने ICC के अध्यक्ष पद की भी जिम्मेदारी संभाली। पवार 2001 से लेकर 2012 तक मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे। उन्हें 2015 में फिर से अध्यक्ष चुना गया था।