पटना: जेपी आंदोलन को छोड़ दें तो सत्ता में आने के बाद लालू प्रसाद जब कभी जेल गए, उनकी प्रासंगिकता खत्म होने का अनुमान लगाया गया। अब तक यह अनुमान गलत ही साबित हुआ है। बल्कि, कई बार तो वह अधिक प्रासंगिक होकर सामने आए। इस बार फिर उनके जेल जाने की संभावना के यह प्रश्न पूछा जाने लगा है कि क्या राज्य और देश की राजनीति में लालू प्रासंगिक नहीं रह जाएंगे?
देखना दिलचस्प होगा कि 1995 में पहली बार अपनी ताकत से सत्ता में आए (1990 में उनकी सरकार गैर-कांग्रेस दलों की थी) लालू प्रसाद जब दो साल बाद ही जेल गए तो क्या हुआ। सबसे बड़ी बात यह कि चारा घोटाले की जेल यात्रा से वह तनिक भी कुंठित नहीं हुए। जेल से हाथी पर सवार होकर लौटे। यह वह दौर था, जब लालू के समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री नहीं, राजा कहते थे। सो, जेल से लौटने के लिए उन्होंने राजसी सवारी हाथी का चयन किया। जेल यात्रा के अगले साल 1998 में लोकसभा का चुनाव हुआ। साल भर पहले बना राजद 17 सीटों पर जीता। अगर जेल जाने से वोट प्रभावित होता तो राजद को इतनी सीटें शायद नहीं मिलती।
समर्थक जेल यात्रा को नहीं देते अधिक महत्व
बेशक 1999 के लोकसभा चुनाव में राजद सात सीटों पर सिमट गया। लेकिन, पांच साल बाद बिहार से लोकसभा की 40 में से 22 सीटों पर जीत हासिल कर लालू ने साबित किया कि उनके समर्थक चारा घोटाला और जेल यात्रा को अधिक महत्व नहीं देते हैं। 2005 से 2015 तक राजद के समाप्त होने की भविष्यवाणी कई बार हुई। 2015 के चुनाव में जदयू, कांग्रेस के साथ दोस्ती कर लालू प्रसाद ने साबित किया कि वोटरों का एक बड़ा हिस्सा उन्हें अपना मानता है।