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कभी भारतीय मसालों के लिए तरसती थी दुनिया, अब क्यों लग रहे प्रतिबंध?


नई दिल्ली। एक वक्त था, जब पूरी दुनिया भारत के मसालों की दीवानी थी। धरती के कोने-कोने से व्यापारी सिर्फ मसालों के लिए भारत आते थे। काली मिर्च जैसे मसाले तो उस वक्त सोने के भाव बिकते थे। भारतीय मसाले ना सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए मशहूर थे, बल्कि उनकी अपनी एक रोग प्रतिरोधक क्षमता भी थी। यही वजह है कि बाकी एशियाई देशों के अलावा प्राचीन रोम में भारतीय मसाले भेजे जाते थे।

 

आज भी सूरतेहाल ज्यादा नहीं बदला नहीं है। भारत की पहचान अब भी सबसे बड़े मसाला निर्यातक के तौर पर है। भारत की कुल मसाला उत्पादन में हिस्सेदारी तकरीबन 75 फीसदी है। वित्त वर्ष 2022-23 में भारत ने करीब 35 हजार करोड़ रुपये के मसालों का निर्यात किया। अंतराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) ने मसालों की 109 किस्मों को सूचीबद्ध कर रखा है। भारत इनमें से लगभग 75 का उत्पादन करता है।

लेकिन, पिछले कुछ दिनों में भारतीय मसालों की साख को बड़ा धक्का लगा है। खासकर, सिंगापुर और हांगकांग में भारत की दो प्रतिष्ठित मसाला कंपनियों- MDH और एवरेस्ट के कुछ प्रोडक्ट्स पर कथित तौर पर प्रतिबंध लगने के बाद। अब अमेरिका समेत कम से कम पांच देश भारतीय मसालों की जांच कर रहे हैं।

कौन भारत से खरीदता है सबसे ज्यादा मसाला?

चीन 7,732 करोड़ रुपये
अमेरिका 4,781 करोड़ रुपये
बांग्लादेश 2,826 करोड़ रुपये
यूएई 2,140 करोड़ रुपये
थाईलैंड 2,140 करोड़ रुपये
मलेशिया 1,227 करोड़ रुपये
इंडोनेशिया 1,227 करोड़ रुपये
ब्रिटेन 1,227 करोड़ रुपये
श्रीलंका 1,227 करोड़ रुपये
सऊदी अरब 1,227 करोड़ रुपये

 

भारतीय मसालों में क्या दिक्कत है?

आरोप है कि भारतीय मसालों में जहरीले केमिल एथिलीन ऑक्साइड की मात्रा तय सीमा से अधिक है। एथिलीन ऑक्साइड का इस्तेमाल मसालों में फूड स्टेबलाइजर के रूप में होता है। लेकिन, इसका लंबे वक्त तक तय सीमा से अधिक सेवन करने पर कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी होने का खतरा रहता है।

अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) का दावा है कि भारत के कम से कम 30 मसाला उत्पाद साल्मोनेला (Salmonella) की वजह से अस्वीकार किए गए। वहीं, 11 उत्पादों को गलत ब्रांडिंग, छेड़छाड़, आर्टिफिशियल कलर या गलत लेबलिंग के चलते अमेरिका ने लेने से मना कर दिया।

अमेरिका के सीमा शुल्क अधिकारियों ने पिछले छह महीनों में महाशियान दी हट्टी (MDH) प्राइवेट लिमिटेड के सभी मसाला शिपमेंट में से 31 प्रतिशत को रिजेक्ट कर दिया। इन सभी में साल्मोनेला मिले होने का आरोप था।

टाइफाइड वाला बैक्टीरिया है साल्मोनेला

साल्मोनेला दरअसल बैक्टीरिया का ग्रुप है। यह इंसान की आंतों पर हमला करता है। साल्मोनेला बैक्टीरिया अमूमन अंडा, बीफ और कच्चे मुर्गों में मिलता है। लेकिन, कई बार यह फल-सब्जियों और मनुष्यों के आंतों को भी अपना ठिकाना बना लेता है। ये बैक्टीरिया सांप, कछुए और छिपकली से भी फैलता है।

अगर कोई साल्मोनेला बैक्टीरिया वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करता है और उन्हें ठीक से नहीं पकाया गया है, तो उसके पाचन तंत्र काफी बुरा असर पड़ सकता है। यह टाइफाइड (Typhoid) जैसी गंभीर बीमारी की वजह भी बन सकता है, जिसे मियादी बुखार भी कहते हैं। इसमें बीमार शख्स के पाचन तंत्र और ब्लड स्ट्रीम में साल्मोनेला बैक्टीरिया घुस जाते हैं। इससे डायरिया भी हो सकता है।

क्या कर रहा स्पाइसेज बोर्ड ऑफ इंडिया?

भारत दुनिया में मसालों का सबसे बड़ा निर्यातक है। देश के कृषि निर्यात में मसालों की हिस्सेदारी लगभग 10 प्रतिशत है। 2005 से 2021 के बीच मसालों के निर्यात में 30 फीसदी की वृद्धि हुई थी। अगर भारतीय मसालों के निर्यात पर इसी तरह रोक लगती रही, तो भारत की ‘मसाला किंग’ वाली छवि को झटका लगेगा। इससे जाहिर तौर पर एक्सपोर्ट में मसालों की हिस्सेदारी घटेगी और इससे देश की कमाई और रोजगार पर चोट पहुंच सकती है।

स्पाइसेज बोर्ड ऑफ इंडिया भी इन जोखिमों से वाकिफ है। यही वजह है कि उसने देश से निर्यात होने वाले उत्पादों की टेस्टिंग को अनिवार्य कर दिया है। मसाला उत्पादों में एथिलीन ऑक्साइड के सही इस्तेमाल के लिए गाइडलाइंस भी जारी की गई है। स्पाइस बोर्ड इस बात पर भी विचार कर रहा कि एथिलीन ऑक्साइड का बेहतर विकल्प क्या हो सकता है।

हालांकि, स्पाइस बोर्ड के सामने मसला यह है कि हजारों करोड़ की मसाला इंडस्ट्री की गुणवत्ता मापने के लिए देश में सिर्फ 9 लैब है। अगर अमेरिका के रद्द किए गए आयातित खाद्य पदार्थों में भारत की हिस्सेदारी करीब 23 फीसदी है, तो इसकी एक बड़ी वजह लैब की किल्लत भी है।