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कश्मीर घाटी: नजरअंदाज किया गया खुफिया इनपुट्स को और नतीजा सामने है


  • 3 माह पूर्व से थी सुरक्षा एंजेंसियों को हमले की जानकारी बावजूद इसके नहीं रोक सकी आंतकी घटनाएं

इसे अब दबे स्वर में माना जा रहा है कि कश्मीर घाटी में नागरिकों को टारगेट बनाकर उनकी हत्या किए जाने के बारे में सुरक्षा एजेंसियों को तीन महीने पहले ही इनपुट माध्यम से पता था। एक हफ़्ते के भीतर मरने वालों में तीन कश्मीरी मुसलमान भी हैं, लेकिन मंगलवार को माखन लाल बिंद्रू, बिहार के एक रेहड़ी वाले और बुधवार को दो अध्यापकों की मौत ने 1990 के दशक जैसे हालात की याद दिला दी है।

1990 के दशक में हजारों कश्मीरी पंडितों को हिंसा की वजह से घाटी छोड़कर देश के कई हिस्सों में रिफ्यूजी कैंपों में जाना पड़ता था।
हाल ही में कश्मीरी पंडितों को सरकार ने घाटी में नौकरियां दी हैं जिसकी वजह से कई लोग वापस लौटे हैं। सरकार के इस कदम से आतंकी बौखला गए थे। ताजा हत्याओं ने उन कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा भी खतरे में डाल दी है जो 1990 के दशक में आतंकी खतरे के बावजूद घाटी में ही डटे रहे थे।

पुलिस के मुताबिक इस साल विभिन्न घटनाओं में अब तक 28 लोग मारे गए हैं। इनमें पांच लोग कश्मीरी हिंदू, सिख थे और दो हिंदू प्रवासी मज़दूर थे। बीते एक सप्ताह में सात मौतों के कारण कश्मीर में रहने वाले अल्पसंख्यकों के बीच डर बढ़ गया है। शहरों में पुलिस हाई एलर्ट पर है और जगह-जगह तलाशी ली जा रही है। रिपोर्ट कहती है कि पुलिस सूत्रों के मुताबिक़ शहर में हमलों के बारे में ख़ुफ़िया इनपुट थे और कई जगहों पर अतिरिक्त नाके भी लगाए गए थे।