नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव से पहले शरद पवार को चुनाव आयोग से बड़ा झटका लगा है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) पर दावे की लड़ाई में चुनाव आयोग ने अजित पवार गुट के पक्ष में फैसला सुनाया है। उन्होंने अजित पवार गुट को असली एनसीपी करार दिया है। साथ ही चुनाव चिह्न घड़ी भी अजित गुट को आवंटित किया गया है।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जब किसी राजनीतिक दल में फूट पड़ी है। इससे पहले शिवसेना और लोक जनशक्ति पार्टी में भी दल को लेकर विवाद हुआ था। मामला चुनाव आयोग तक पहुंचा तो बगावत करने वाले दल के समर्थन में फैसला आया। आपको बताते हैं उन राजनीतिक दलों के बारे में…
शिवसेना (Shiv Sena)
- शिवसेना की स्थापना 19 जून 1966 को बाल ठाकरे ने मुंबई में की थी।
- बाल ठाकरे के निधन के बाद पार्टी की कमान उनके बेटे उद्धव ठाकरे के हाथ में आ गई।
- उद्धव के नेतृत्व में पार्टी ने महाराष्ट्र की सत्ता में अहम भूमिका निभाई।
- साल 2014 में शिवसेना ने महाराष्ट्र विधानसभा में बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार चलाई। हालांकि, साल 2019 आते-आते ये गठबंधन टूट गया।
- उद्धव ठाकरे ने बीजेपी का साथ छोड़ एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी की सरकार बनाई। इस सरकार की कमान उद्धव ठाकरे ने संभाली।
उद्धव ठाकरे को साल 2022 में बड़ा झटका लगा। एकनाथ शिंदे ने करीब 40 विधायकों के साथ मिलकर जून 2022 में उद्धव ठाकरे से बगावत कर दी। इस सियासी घटनाक्रम के बाद महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी की सरकार गिर गई और उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। बाद में एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के समर्थन से महाराष्ट्र में नई सरकार बनाई। पार्टी पर दावे की लड़ाई का मामला चुनाव आयोग तक पहुंचा और उन्होंने एकनाथ शिंदे के समर्थन में फैसला सुनाया। एकनाथ शिंदे को पार्टी और चुनाव चिह्न आवंटित कर दिया गया। वहीं, उद्धव ठाकरे गुट को नया नाम शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) मिला और उन्हें मशाल चुनाव चिह्न आवंटित किया गया।
लोक जनशक्ति पार्टी (Lok Janshakti Party)
- लोक जनशक्ति पार्टी का गठन साल 2000 में राम विलास पासवान ने किया था।
- लोक जनशक्ति पार्टी की बिहार के दलितों में अच्छी पकड़ थी।
- राम विलास ने साल 2019 में पार्टी की कमान अपने बेटे चिराग को सौंप दी।
- हालांकि, एक साल बाद 2020 में उनका निधन हो गया, लेकिन 2021 आते-आते चिराग के चाचा पशुपति पारस ने बगावत कर दी।
उन्होंने पहले चिराग को लोकसभा में संसदीय दल के नेता पद से हटाया और इसके बाद पार्टी के अध्यक्ष बन गए। उनके साथ पांच सांसद भी चले गए। लोक जनशक्ति पार्टी पर चाचा और भतीजे ने अपना दावा ठोंका, लेकिन चुनाव आयोग ने पशुपति को असली गुट करार दिया। बाद में चिराग पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) से नई पार्टी बनाई।
एनसीपी (NCP)
- शिवसेना, लोक जनशक्ति पार्टी के अलावा NCP भी दो धड़ों में बंट गई है।
- पार्टी पर दावे की लड़ाई में शरद पवार गुट को बड़ा झटका लगा है।
- चुनाव आयोग ने भतीजे अजित पवार के गुट को असली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बताया है।
- साथ ही आयोग ने अजित गुट को पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न ‘घड़ी’ भी आवंटित कर दी है।
- इसके अलावा उन्होंने शरद पवार गुट को नए नाम सुझाने को कहा है।
बता दें कि अजित पवार ने साल 2023 में कई विधायकों के साथ शरद पवार से बगावत कर दी थी। वह मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली भाजपा-शिवसेना सरकार में शामिल हो गए थे। हालांकि, अजित के फैसले के बाद शरद पवार गुट ने पार्टी पर अपना दावा ठोंका था। लगभग छह महीने से ज्यादा समय तक चली सुनवाई के बाद चुनाव आयोग ने अजित गुट के पक्ष में अपना फैसला सुनाया।
आयोग की ओर से दिए गए 141 पन्नों के फैसले में बताया गया है कि अजित पवार के साथ महाराष्ट्र में पार्टी के 41 विधायक, विधान परिषद के पांच सदस्य, नगालैंड के सभी सात विधायक, झारखंड से एक, लोकसभा के दो और राज्यसभा के एक सदस्य ने समर्थन, जबकि शरद पवार के समर्थन में महाराष्ट्र के 15 विधायकों के साथ ही विधान परिषद के चार सदस्य, केरल के दो विधायक और लोकसभा के चार व राज्यसभा के तीन सदस्यों ने शपथ पत्र दिया था।
समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party)
- शिवसेना, लोक जनशक्ति पार्टी और एनसीपी की तरह समाजवादी पार्टी में भी टूट की नौबत आ गई थी।
- साल 2012 में उत्तर प्रदेश की सत्ता पर अखिलेश यादव काबिज हुए, लेकिन 2016 में अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल यादव के बीच पार्टी की कमान को लेकर विवाद छिड़ गया।
- अखिलेश यादव ने शिवपाल के करीबी गायत्री प्रसाद प्रजापति पर कार्रवाई करते हुए उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था।
- इसके बाद मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश से प्रदेश अध्यक्ष की कमान छिनकर शिवपाल को सौंप दी।
- 2017 में अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह को सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया और अपने हाथ पार्टी की कमान ले ली।
- समाजवादी पार्टी पर दावे की लड़ाई चुनाव आयोग तक पहुंची, लेकिन मुलायम सिंह को बड़ा झटका लगा। चुनाव आयोग ने अखिलेश के पक्ष में फैसला दिया।