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कांग्रेस कार्यसमिति का नहीं होगा चुनाव, अधिवेशन में पार्टी संविधान में कई संशोधनों को मिली मंजूरी


रायपुर। कांग्रेस ने अपनी नीति-निर्धारण की सबसे ताकतवर इकाई कांग्रेस कार्यसमिति का चुनाव नहीं कराने का फैसला किया है। पार्टी की संचालन समिति ने सर्वसम्मति से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को कार्यसमिति के सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार देने का प्रस्ताव पारित कर दिया जिस पर शनिवार को कांग्रेस के 85वें महाधिवेशन के आधिकारिक सत्र की शुरूआत के साथ ही मुहर लग जाएगी। संचालन समिति ने इसके साथ ही पार्टी के संविधान और नियमों से जुड़े संशोधन के कई प्रस्तावों को भी मंजूरी दे दी है जिसमें दलित, आदिवासी, ओबीसी, अल्पसंख्यक और महिलाओं को कांग्रेस कार्यसमिति में 50 प्रतिशत आरक्षण देने का बड़ा राजनीतिक कदम सबसे अहम है।

गांधी परिवार का कोई सदस्य नहीं हुआ शामिल

कार्यसमिति में भी 50 साल से कम उम्र के लोगों की 50 फीसद भागीदारी का रास्ता भी बनाया जा रहा है। साथ ही पूर्व कांग्रेस अध्यक्षों, कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्रियों और लोकसभा व राज्यसभा में पार्टी के नेताओं को कार्यसमिति का सदस्य बनाए रखने के लिए पार्टी संविधान में संशोधन कर कार्यसमिति में सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 30 की जा रही है। कांग्रेस कार्यसमिति का चुनाव कराने की जगह मनोनयन के रास्ते इसका गठन करने के लिए हुई पार्टी संचालन समिति की बैठक में गांधी परिवार का कोई सदस्य शामिल नहीं हुआ।

राहुल गांधी करते रहे हैं पार्टी संगठन के हर स्तर पर चुनाव की हिमायत

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी संगठन के हर स्तर पर चुनाव की हिमायत करते रहे हैं और चुनाव नहीं कराने का फैसला लेने वाली संचालन समिति की बैठक का हिस्सा नहीं होने की एक प्रमुख वजह यह भी मानी जा रही है। साथ ही पार्टी में माना जा रहा कि गांधी परिवार ने इस बैठक से दूरी बनाकर कांग्रेसजनों को यह संदेश दिया है कि पार्टी के सारे फैसले अब मल्लिकार्जुन खरगे ही करेंगे। वैसे यह भी बेहद अहम है कि बीते तीन दशक में गांधी परिवार से इतर खरगे कांग्रेस के पहले अध्यक्ष हैं जिन्हें कार्यसमिति को मनोनयन के जरिए गठित करने का अधिकार मिला है।

प्रस्ताव को सर्वसम्मति से दी गई मंजूरी

पीवी नरसिंह राव के अध्यक्ष बनने पर 1992 में तिरूपति महाधिवेशन में कार्यसमिति के चुनाव हुए तो 1997 में कोलकाता में सीताराम केसरी के अध्यक्ष बनने के उपरांत कार्यसमिति के चुनाव हुए थे। कार्यसमिति का चुनाव कराने के पक्ष और विपक्ष दोनों तरह की राय संचालन समिति में उभरी जिसकी कांग्रेस के संचार महासचिव जयराम रमेश ने पुष्टि करते हुए कहा कि कुछ लोग चुनाव चाहते थे मगर ज्यादातर सदस्य मौजूदा राजनीतिक चुनौतियों के मद्देनजर चुनाव के पक्ष में नहीं थे। चुनाव नहीं कराने पर आम सहमति थी मगर इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से मंजूरी दी गई।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किया विरोध

सूत्रों के अनुसार दिग्विजय सिंह, अजय माकन और अभिषेक सिंघवी जैसे नेताओं ने कार्यसमिति का चुनाव कराने की पैरोकारी की। सिंघवी ने कहा कि अभी संभव नहीं है तो अगले लोकसभा चुनाव के बाद चुनाव कराया जा सकता है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसका विरोध किया और कहा कि जब नीचे के स्तर पर चुनाव नहीं हुए तो कार्यसमिति चुनाव की जरूरत नहीं है। प्रमोद तिवारी ने गहलोत का समर्थन करते हुए कहा कि अभी राज्यों में और फिर अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में कार्यसमिति के चुनाव से पार्टी में अंदरूनी विभाजन बढ़ेगा।

आनंद शर्मा ने भी नहीं उठाई चुनाव के लिए आवाज

इस दौरान, दिलचस्प यह भी रहा कि एक समय चुनाव की मांग उठाने वाले वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने चुनाव के लिए आवाज नहीं उठाई और कहा कि मौजूदा राजनीतिक वास्तविकताओं के परिप्रेक्ष्य में कार्यसमिति का आकार बढ़ाया जाना चाहिए। वैसे संचालन समिति ने पार्टी संविधान में जिन कुछ महत्वपूर्ण संशोधनों को मंजूरी दी है जिसमें सभी पूर्व कांग्रेस अध्यक्षों, पार्टी के पूर्व प्रधानमंत्रियों और संसद में पार्टी के दोनों सदनों के नेताओं को कार्यसमिति का सदस्य बनाए जाने का प्रावधान किया जा रहा है। अभी कार्यसमिति में 23 सदस्यों के साथ कांग्रेस अध्यक्ष और संसदीय दल के नेता को मिलाकर कुल 25 सदस्य हैं।

तीस हो जाएगी कार्यसमिति की संख्या

जयराम ने कहा कि अब कार्यसमिति में इन सबको मिलाकर संख्या 30 हो जाएगी। उन्होंने कार्यसमिति में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी, महिलाओं, अल्पसंख्यकों और युवाओं को 50 फीसदी आरक्षण देने के पार्टी संविधान संशोधन प्रस्ताव को भी बेहद अहम करार दिया।