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कानून की नजर में लाउडस्पीकर का विरोध; सुप्रीम कोर्ट कर चुका है साफ- जबरन ऊंची आवाज मौलिक अधिकार का उल्लंघन


 नई दिल्ली। लाउडस्पीकर बजाने के विवाद में विरोध का पहला कारण अनचाहे शोर पर यानी ध्वनि प्रदूषण को लेकर है। सुप्रीम कोर्ट ध्वनि प्रदूषण पर रोक के मामले में दिये अपने फैसले में कह चुका है कि जबरदस्ती ऊंची आवाज यानी तेज शोर सुनने को मजबूर करना मौलिक अधिकार का हनन है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले, मौजूदा नियम कानून देखें तो तय सीमा से तेज आवाज में लाउडस्पीकर नहीं बजाया जा सकता।

सबसे अहम फैसला 18 जुलाई 2005 का

ध्वनि प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट का सबसे अहम फैसला 18 जुलाई 2005 का है जिसमें कोर्ट ने कहा था कि हर व्यक्ति को शांति से रहने का अधिकार है और यह अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है। लाउडस्पीकर या तेज आवाज में अपनी बात कहना अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार में आता है लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी जीवन के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकती।

किसी को भी शोर करने का अधिकार नहीं

किसी को इतना शोर करने का अधिकार नहीं है जो उसके घर से बाहर जाकर पड़ोसियों और अन्य लोगों के लिए परेशानी पैदा करे। कोर्ट ने कहा था कि शोर करने वाले अक्सर अनुच्छेद 19(1)ए में मिली अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की शरण लेते हैं। लेकिन कोई भी व्यक्ति लाउडस्पीकर चालू कर इस अधिकार का दावा नहीं कर सकता।

यह मौलिक अधिकार का उल्लंघन

गर किसी के पास बोलने का अधिकार है तो दूसरे के पास सुनने या सुनने से इनकार करने का अधिकार है। लाउडस्पीकर से जबरदस्ती शोर सुनने को बाध्य करना दूसरों के शांति और आराम से प्रदूषणमुक्त जीवन जीने के अनुच्छेद 21 में मिले मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। अनुच्छेद 19(1)ए में मिला अधिकार अन्य मौलिक अधिकारों को हतोत्साहित करने के लिए नहीं है।