चंडीगढ़। किसान आंदोलन खत्म होने से अब सिंघु और टीकरी बार्डर खुलने का रास्ता साफ हो गया है। दिल्ली सहित एनसीआर के दूसरे जिलों में आवागमन सुचारू होने के बाद स्थानीय उद्योगों को खासी राहत मिलेगी। 378 दिन चले किसान आंदोलन के दौरान प्रदेश की छोटी-बड़ी करीब 15 हजार औद्योगिक इकाइयां बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। ऐसे में स्थानीय उद्योगों को घाटे की भरपाई में लंबा वक्त लग सकता है।
बार्डर बंद होने से बुरी तरह त्रस्त स्थानीय किसान अब दिल्ली सहित एनसीआर के दूसरे इलाकों में अपने फसल उत्पादों की आपूर्ति आसानी से कर सकेंगे। बहादुरगढ़ के टीकरी बार्डर और सोनीपत के सिंघु बार्डर पर जमे लोगों में भले ही पंजाब के किसानों की भागीदारी ज्यादा थी, लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित हरियाणा के कारोबारी और किसान हुए। पिछले साल 26 नवंबर को बार्डर बंद होने के बाद से ही उद्योगों तक कच्चे और तैयार माल की सप्लाई बाधित होने से बड़ी संख्या में उद्योगों पर ताला लग गया। लाखों लोग बेरोजगार हो गए। आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार कुंडली और टीकरी बार्डर बंद होने से एक साल में उद्योगपतियों और कारोबारियों को करीब 50 हजार करोड़ रुपये की चपत लग चुकी है।
भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (एसोचैम) के मुताबिक किसान आंदोलन की वजह से हरियाणा की अर्थव्यवस्था को गहरा आघात पहुंचा है। किसानों के विरोध-प्रदर्शन, सड़क, टोल प्लाजा और रेल सेवाएं बाधित होने से आपूर्ति श्रृंखला खासी प्रभावित हुई। अर्थव्यवस्था पर इसका असर आगे भी दिखेगा। इससे अर्थव्यवस्था का पुनरोद्धार भी प्रभावित हो सकता है। कपड़ा, वाहन कलपुर्जा, साइकिल, खेल का सामान जैसे उद्योग क्रिसमस से पहले अपने निर्यात आर्डरों को पूरा नहीं कर पाएंगे जिससे वैश्विक कंपनियों के बीच उनकी छवि प्रभावित होगी।
परिवहन लागत घटेगी, बढ़ेंगे रोजगार के अवसर
किसान आंदोलन के चलते दिल्ली से कच्चा माल लाने व तैयार माल ले जाने के लिए उद्यमियों को अतिरिक्त किराया देना पड़ रहा था। रूट डायवर्ट होने से स्थानीय किसानों को भी फसल उत्पादों की बिक्री के लिए अतिरिक्त परिवहन खर्च उठाना पड़ा। आंदोलन खत्म होने से स्थानीय उद्योगों में काम सुचारू होने के साथ ही अन्य काम धंधे पटरी पर लौटेंगे। दिल्ली से आवागमन के रास्ते मिल जाएंगे तो उनका व्यापार दौड़ेगा। इससे रोजगार के भी अवसर मिलेगा।