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क्या राज्यों को उनका पैसा नहीं दे रही केंद्र सरकार? बंगाल, कर्नाटक के बाद केरल ने लगाए आरोप


नई दिल्ली। केंद्र सरकार पर राज्य सरकारों ने उनके हिस्से का पैसा न देने का आरोप लगाया है। कर्नाटक समेत कई राज्यों की सरकारों ने केंद्र पर भेदभाव का आरोप लगाया है। अंतरिम बजट के बाद भी इसी तरह के आरोप केंद्र पर लगाए गए थे।

कर्नाटक के सीएम सिद्दरमैया ने तो अपने विधायकों और कांग्रेस पार्टी के सांसदों के साथ केंद्र के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उन्होंने जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर केंद्र से भेदभाव न करने की अपील की और कहा कि हम केंद्र को 100 रुपये दे रहे हैं तो वो सिर्फ 12 रुपये लौटा रहा है।

केंद्र पर क्या लगे हैं आरोप

कर्नाटक समेत कई दक्षिण भारत के राज्यों का आरोप है कि केंद्र को जो राज्य ज्यादा टैक्स जुटाकर दे रहे हैं, उन्हें दूसरों के मुकाबले कम फंड दिया जाता है। इन राज्यों का आरोप है कि केंद्र सरकार उत्तर भारत के राज्यों को कम टैक्स देने पर भी ज्यादा फंड देती है।

किसे मिला ज्यादा फंड

बता दें कि हमेशा की तरह इस बार के बजट में भी केंद्र सरकार ने राजस्व के बंटवारे का ब्यौरा जारी किया। इसमें बताया गया कि केंद्र के टैक्स और शुल्कों में से किस राज्य को कितना हिस्सा दिया गया है। बयौरे में बताया गया कि इसमें कुल राजस्व में से सबसे ज्यादा यूपी को 17.939 फीसदी यानी 2.19 लाख करोड़ रुपये मिलेगा। वहीं, दूसरे नंबर पर बिहार को 10.058 फीसद यानी 1.23 लाख करोड़ रुपये मिलेंगे।

तीसरे नंबर पर एमपी 7.85 फीसद (95,752), फिर पश्चिम बंगाल 7.52 फीसदी (91,764 करोड़) और पांचवे पर महाराष्ट्र को 6.31 फीसद (77,053 करोड़) को मिलेंगे।

इन राज्यों को मिलता है कम हिस्सा

केंद्र के फंड में सबसे कम आंध्र प्रदेश को 4.05 फीसद यानी 49,364 करोड़, कर्नाटक को 3.65 फीसद यानी 44, 485 करोड़ और तमिलनाडु को 4.08 फीसद यानी 49,755 करोड़ का हिस्सा मिलता है।

क्या है विवाद की वजह

दरअसल, दक्षिण की सरकारों का कहना है कि केंद्र सरकार राज्यों को कम फंड दे रही है। कांग्रेस का आरोप है कि जितना टैक्स ये राज्य भरते हैं, उसके मुकाबले बहुत कम फंड इन्हे जारी किया जाता है। कांग्रेस का कहना है कि 14वें वित्त आयोग ने जब करों का बंटवारा किया था तो कर्नाटक को 4.71 फीसद हिस्सेदारी मिलनी थी, लेकिन अब 15वें वित्त आयोग में ये घटकर 3.64 हो गई है। इससे राज्य को लगभग 2 लाख करोड़ का नुकसान हुआ है।

हालांकि, आंकड़ों के अनुसार ये बात तो साफ है कि ज्यादा टैक्स देने वालों को केंद्र की ओर से राजस्व का कम हिस्सा मिलता है। जैसे बिहार टैक्स देने में ज्यादा आगे नहीं है, लेकिन यूपी के बाद उसे ही सबसे ज्यादा राजस्व हिस्सेदारी मिलती है। वहीं, टैक्स जमा करने वाले टॉप राज्यों में शामिल कर्नाटक, तमिलनाडु और गुजरात को राजस्व कम मिलता है।

इस तरह होता है टैक्स का बंटवारा

देश के संविधान के अनुच्छेद 280 के अनुसार, टैक्स की हिस्सेदारी वित्त आयोग के तहत होगी। वित्त आयोग ही राज्यों को क्या हिस्सा मिले उसकी सिफारिश करता है।

जीएसटी आने के बाद कई ऐसे टैक्स हैं जो पहले राज्य सरकारें खुद अर्जित करती थी, वो अब केंद्र के पास जाता है। इसका हिस्सा पाने के लिए भी राज्यों को केंद्र पर निर्भर होना पड़ता है। अब यहां बता दें कि राज्यों को ये फंड वेटेज सिस्टम के आधार पर मिलते हैं। राज्यों को आबादी, जंगल, परफॉर्मेंस, इनकम और राज्य का घाटा कम करने के प्रयासों के आधार पर हिस्सेदारी मिलती है।