नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को साल 1967 के फैसले को पलट दिया है। 1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत सरकार के मामले में कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता है।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे का निर्धारण अब तीन जजों की नियमित पीठ करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले को पीठ के पास भेज दिया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मानदंडों के आधार पर अल्पसंख्यक संस्थान का फैसला होगा। 2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना था। इसके बाद विश्वविद्यालय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सात न्यायाधीशों की पीठ ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्ज से जुड़े मामले में सुनवाई की। सर्वोच्च न्यायालय ने 4:3 के बहुमत से अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मामले में नियमित तीन न्यायाधीशों की पीठ निर्णय लेगी। सुनवाई के दौरान इस मामले में न्यायाधीश बंट गए। तो आइए जानते हैं 1967 का अजीज बाशा बनाम भारत सरकार का पूरा मामला क्या है?
अजीज बाशा बनाम भारत सरकार
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे पर विवाद सबसे पहले 1965 में शुरू हुआ। 20 मई 1965 को केंद्र सरकार ने एएमयू एक्ट में संशोधन किया था। इससे संस्थान की स्वायत्तता को खत्म कर दिया गया था। बाद में सरकार के फैसले को अजीज बाशा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।