नई दिल्ली, । ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बगावत की चिंगारी भड़काने वाले बैरकपुर रेजीमेंट के सिपाही मंगल पांडेय को आज के ही दिन फांसी दे दी गई थी। देश को आजाद कराने का पहला श्रेय मंगल पांडेय को ही है। उनकी आजादी की चिंगारी भर ने ब्रिटिश हुकूमत को इतना डरा दिया कि निश्चित तारीख से दस दिन पहले ही 8 अप्रैल 1857 को पश्चिम बंगाल के बैरकपुर जेल में उन्हें फांसी दे दी गई।
बलिया में जन्मे थे क्रांतिकारी
क्रांतिकारी मंगल पांडेय का जन्म बलिया के निकट नगवा गांव में 19 जुलाई 1827 को सरयुपारी ब्राह्मण के घर हुआ था। पिता का नाम दिवाकर पांडेय और मां का नाम अभय रानी पांडेय था। मात्र 22 साल की उम्र में ही वे ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में सिपाही के तौर पर शामिल हो गए थे। समय के साथ बदले हालात ने मंगल पांडेय को ब्रिटिश हुकूमत का दुश्मन बना दिया।
इसलिए किया था बंदूक लेने से इंकार
सिपाहियों के लिए साल 1850 में एनफिल्ड राइफल दिया गया। दशकों पुरानी ब्राउन बैस के मुकाबले शक्तिशाली और अचूक इस एनफिल्ड बंदूक को भरने के लिए कारतूस को दांतों की सहायता से खोलना पड़ता था। कारतूस के कवर को पानी के सीलन से बचाने के लिए उसमें चर्बी होती थी। इस बीच खबर मिली की कारतूस की चर्बी सूअर और गाय के मांस से बनी है। सिपाहियों ने इसे ब्रिटिश हुकूमत सोची-समझी साजिश के तहत हिंदू-मुसलमानों के धर्म से खिलवाड़ समझा। तभी मंगल पांडेय ने कारतूस का इस्तेमाल करने से इंकार कर दिया।
ब्रिटिश हुकूमत पर हमला करने वाले पहले सिपाही थे मंगल पांडेय
बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट 29 मार्च 1857 को रेजीमेंट के अफसर लेफ्टिनेंट बाग द्वारा जोर-जबर्दस्ती किए जाने पर मंगल पांडेय ने उन पर हमला कर दिया। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ किसी भी सैनिक का यह पहला विरोध था। इसके बाद तो मंगल पांडेय पर धार्मिक उन्माद का आरोप लगा और गिरफ्तार करने का आदेश भी जारी हो गया लेकिन इसके बाद मंगल पांडेय को गिरफ्तार करने से सबने इंकार कर दिया। ‘मारो फिरंगियों को’ का हुंकार देने के साथ ही मंगल पांडेय ने सिपाहियों से ब्रिटिश हुकूमत का विरोध करने के लिए कहाऔर हथियार उठा लिया था। उन्होंने सार्जेंट मेजर ह्यूसन को गोली मार दी।
मंगल पांडेय ने अपनी गिरफ्तारी से पहले ही खुद को गोली मार ली लेकिन घाव गहरा नहीं था। इसके बाद उनकी गिरफ्तारी हुई और उन पर कोर्ट मार्शल कर 18 अप्रैल को फांसी पर चढ़ाने की सजा दी गई। इसके बाद भी ब्रिटिश शासन को भय था और इसलिए मंगल पांडेय को 10 दिन पहले यानी 8 अप्रैल 1857 को गुपचुप तरीके से फांसी पर चढ़ा दिया।