चहनियां। महुआरी खास गांव में मां गंगा के तट पर चल रहे श्रीमद्भागवत कथा में तेरहवें दिन सुंदरराज स्वामी ने कहा कि जिसको आराम चाहिए उसको छाया में जाना होगा । वैसे ही मन को शांति चाहिए तो प्रभु के शरण मे जाना होगा। लक्ष्मी दो वाहनों पर बैठकर आती है । एक नारायण के साथ गरुण के साथ दूसरा उल्लू पर । किन्तु उल्लू पर बैठकर आती है तो धन टिकता नही है और लक्ष्मी गरुण पर जब आती है तब हम अपने धन का दुरुपयोग न करे। अच्छे कार्यो में भी पैसा लगाते है। मित्र हो तो कृष्ण सुदामा की तरह हो। आज तो मित्रता लोग अपने बराबरी का करते है । आपकी मित्रता लोग तब करते है जब आपके पास धन हो, पद हो, बैभव हो, खर्चा करने वाला है। यदि आपके पास कुछ नही है तो कोई मित्र नही होता है । मित्रता तो कृष्ण सुदामा का था जो वर्षों मिलने के बाद भी अपना सब कुछ दे दिया। तब रुक्मिणी ने समझाया कि भगवान सुदामा को सब दे दोगे तो हम कहा जायेंगे। मित्र वो होना चाहिए जो मित्र की मदद हो जाये और दूसरे को पता नही चले। जंहा उम्मीद होती है वही लोग जाते है । जंहा प्रेम का भाव न मिले वहां पर नही जाना चाहिए। मित्र का विचार भाव मन एक होना चाहिए। मित्रता में अमीरी गरीबी नही देखना चाहिए। मित्रता व सम्बंध में झूठ दरार पैदा कर देती है । इस दौरान दीपक सिंह, राजेन्द्र पाण्डेय, ओमनारायण सिंह, छोटू यादव आदि सैक?ो लोग उपस्थित थे ।