चंदौली। भोजन नहीं मिलता रहा, एक टाइम भी मिल जाये तो मैं बहुत अच्छा समझता था कि दो तीन सांझ तक मेरा चल जायेगा मैं किसी के गली या गुच्चियों में खड़ा होता था, मै तिरस्कृत किया जाता था, वहां से भगा दिया जाता था, या तो मेरे पास वस्त्र का हीनता था, ना ही मेरे कोई सुन्दर ऐसा वस्त्र नहीं था कि ऐसा वेश.भूषा बनाकर के उनके सामने मैं भीक्षा के लिये वंचना करू तो वह मुझे दें दे, यह भी कारण था शायद मैं अच्छे वस्त्र पहने रहता या कोई कमण्डल लिये रहता या जटा-जूट रहता या भस्मी लगाये रहता तो मुझे कोई साधु समझकर भी या कोई अच्छे भिक्षुक समझकर के दे भी सकता था, मगर यह सब भी वेश.भूषा मेरा नहीं था, उक्त बातें परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी ने वर्ष 1990 के शारदीय नवरात्र के द्वितीया तिथि को उपस्थित श्रद्धालुओं व भक्तगणों को अपने आर्शीवचन में कही। उन्होंने कहा कि यह सब न होने के कारण मै उदासित था, हर तरफ से उदासित था बहुत अजीब सा जीवन जीता था, इसी तरह से मैं समझता हूं कि सभी के जीवन में बहुत कुछ अपने बचपन में आता है, समय हमलोग बहुत सामान्य घरों से मामूली सी ऐसे घरों से निकले हैं कि हम लोगों का बचपन बहुत दु:ख से बहुत संतप्त से बीता हुआ है, बहुत तरह की वेदनाओं को सहा हुआ हैं, इसलिये हमलोग बहुत बात समझता हूं। कितना हमलोगों में बनावटी है यह भी हमलोगों में समझता हूं कि हम लोग तो कही बनावटी तो नहीं कर रहे हैं, वह बनावटी पना हमे कितना दूर फेके देगा यह भी हम लोग समझते हैं, इसी तरह से बन्धुओं यह सिखाया जाता था हम लोगों में साधु के बीच भी रहा हूं, राजाओं के बीच भी रहा हू, व्यापारियों के बीच भी रहा हूं, और ऐसे सामान्य किसानों के बीच भी रहा हूं और इधर आकर के नेताओं के बीच भी रहा हूं, ग्रामीणों के बीच भी रहा हूं अपने देश वासियों के बीच भी रहा हूं अन्तर्राष्ट्रीय देश के बीच भी रहा हूं, उनमें भी उनकी बड़े लोगों से भेट किया हूं और उन सामान्य लोगों से रोड पर गुजरने वाले के बीच भी रहकर आया हूं, मुझे सब कुछ दिखता है, बन्धुओं की हमारी जो हमसें जो कुछ भी बनावटी है वह हमारा दम्भ में है और उस दम्भ ने हमे बहुत पीछे ढकेल देता है, जो समझ नहीं पाता हूं और जिसके चलते न वह ईश्वर ही प्राप्त कर पाता हूं न वही ईश्वर की सत्ता को ही प्राप्त कर पाता हूं न सम्मान देने योग्य ही होता हूं न सम्मान प्राप्त रखने की योग्यता ही रखता हूं न गुरू जनों के बात पर हमे पूर्ण विश्वास ही रख पाता हूं न हम अपने में ही उपजे हुए अच्छे विचारों का ही हम विश्वास कर पाता हूं हमे अपने ही मन में बहुत से भ्रंातियां रहता है। बहुत सी भ्रांतियां उत्पन्न रहता है-है नहीं है उचित है, अनुचित है, इस तरह की बातें मुझे भी कई एक-एक बार ऐस-ऐसे आत्माओं से भी मुलाकात है, मगर उनपर मुझे तक दृढनिश्चय नहीं हुआ है कि ये आत्माये दुरात्माये थी कि यह आत्माये किसी अच्छे महापुरूषों की आत्मायें थी या ये आत्मायें मुझे जो सहयोग मिला है यह कोई ईश्वरीय आत्मायें थी, दैविक आत्मायें थी, या इनमें मुझे कोई तिरस्कार मिला है वह कोई ऐसे गुणहीन प्राणि या जिसने मुझे हर तरह के लोभाने की कोशिश किया है और उसके लोभ में पड़कर हम अपने वास्तविक्ता से बिल्कुल अलग.थलग पड़े रहे। परमपूज्य अघोरेश्वर बाबा कीनाराम के व्यक्तित्व व कृतित्व के बाबत श्रद्घालुओं को बताते हुए पूज्य मां श्री सर्वेश्वरी सेवा संघ जलीलपुर पड़ाव के संस्थापक पूज्य गुरुदेव बाबा अनिल राम जी का कहना है कि गुरु की कृपा से सबकुछ सुलभ है। सौजन्य से बाबा कीनाराम स्थल खण्ड-२