नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों में जम्मू कश्मीर के भीतर आतंकियों और सुरक्षाकर्मियों के बीच मुठभेड़ की कई घटनाएं सामने आई है। ताजा घटना डोडा की है, जहां आतंकियों ने मुठभेड़ में दो सैनिकों को घायल कर दिया है।
तलाशी अभियान के दौरान आतंकियों ने सैनिकों पर हमले किए। इससे पहले सोमवार को डोडा के देसा वन क्षेत्र में हुई मुठभेड़ में कैप्टन सहित चार जवान वीर गति को प्राप्त हो गए थे। वहीं, इससे पहले कठुआ के पहाड़ी क्षेत्र बदनोता में आतंकियों ने सैन्य वाहन पर हमला किया था। इस हमले में पांच जवान शहीद हुए थे।
9 जून को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री की शपथ ली, उसी दिन रियासी जिले में एक बस पर आतंकी हमला हुआ था। इस हमले में नौ तीर्थयात्री मारे गए थे, वहीं, 42 लोग घायल हो गए थे।
आतंकी हमलों के पीछे जैश-ए-मोहम्मद का हाथ
डोडा और कठुआ में हुए आतंकी हमलों की जिम्मेदारी कश्मीर टाइगर्स ने ली है। वहीं, पीपुल्स एंटी-फासीस्ट फ्रंट ने पुंछ-राजौरी हमले की जिम्मेदारी ली। ये दोनों आतंकी समूह जैश-ए-मोहम्मद का फ्रंट माना जाता है।
जैश और लश्कर जैसे आतंकी समूह की कोशिश है कि अलग-अलग फ्रंट बनाकर सुरक्षाबलों की जांच को प्रभावित किया जाए। सुरक्षा एजेंसियों के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, इन सभी आतंकी घटनाओं के पीछे पाकिस्तान का हाथ है।
घाटी में अशांति- पाकिस्तान का एजेंडा
सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, लोकसभा चुनाव में कश्मीर घाटी में भारी मतदान के बाद पाकिस्तान हताशा में विधानसभा चुनाव के पहले माहौल खराब करने के लिए जम्मू इलाके में हमलों को अंजाम दे रहा है।
केंद्रीय विश्वविद्यालय जम्मू में कम्पैरेटिव रिलिजन एंड सिविलाइजेशन विभाग के निदेशक डॉ. अजय सिंह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में हाल ही में लोकसभा चुनाव हुए हैं और अब विधानसभा चुनाव की तैयारी चल रही है। पाकिस्तान कभी नहीं चाहेगा कि यहां विधानसभा चुनाव हों या शांति बनी रहे।
अगर यहां विधानसभा चुनाव भी शांति से संपन्न होते हैं तो कश्मीर में पाकिस्तान का एजेंडा जो थोड़ा बहुत बचा है, पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। इससे पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तान का सत्तातंत्र पूरी तरह प्रभावित होगा। भारतीय सेना लगातार सीमा पार से आर रहे आतंंकियों की ट्रैकिंग कर रही है। वहीं, घाटी में स्थानीय लोगों की मदद से सेना घुसपैठियों पर नजर रख रही है।
इन इलाकों में जैश- ए- मोहम्मद का नेटवर्क मजबूत
बता दें कि डोडा, किश्तवार, पुंछ, रजौरी, रियासी, कठुआ के मुश्किल भौगोलिक इलाकों में पिछले दो दशक में जैश- ए- मोहम्मद और लश्करे तैयबा ने ओवर ग्राउंड वर्कर का नेटवर्क खड़ा किया। इन नेटवर्क के जरिए सीमा पार से आकर आतंकी जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों को अंजाम दे रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 खत्म होने के बाद से पाकिस्तान पूरी तरह बौखला चुका है। वहीं, दुश्मन देश की कोशिश है कि घाटी में अशांति बनी रहे। गौरतलब है कि आर्टिकल 370 निरस्त किए जाने के बाद से अब तक केंद्रशासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव नहीं हुए हैं।
जम्मू में अचानक क्यों बढ़ी आतंकी गतिविधियां?
- एक तरफ जहां कश्मीर में ऊंचे पहाड़ों का फायदा आतंकी उठाते हैं। वहीं, जम्मू का ज्यादातर इलाका घने जंगलों से घिरा हुआ है। इन भौगोलिक क्षेत्रों में आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करना सेना के लिए एक चुनौती है। घने जंगलों में आतंकियों पर नजर बनाए रखना काफी मुश्किल है।
- वहीं, अक्सर घाटी में छिपने के लिए आतंकी स्थानीय लोगों की मदद लेते रहते हैं।
- जम्मू का इलाका नदियों वाला है। मॉनसून के समय पाकिस्तान सीमा पर ज्यादातर नदियां उफान पर रहती है, जिसकी वजह से आतंकियों को घुसपैठ करने में आसानी होती है।
- जम्मू क्षेत्र में समान स्तर की खुफिया जानकारी मौजूद नहीं है. इसीलिए आतंकी सॉफ्ट टारगेट को निशाना बना रहे हैं. वो अस्थायी चौकियां, वाहन चौकियां और यहां तक कि नागरिकों को भी निशाना बना रहे हैं।
- आतंकवादी नागरिकों के रूप में प्रवेश करते हैं और स्थानीय गाइडों की मदद से छिपने के जगह और हथियार इकट्ठा करते हैं।