सम्पादकीय

जैविक युद्धका दंश चीनी कोरोना


ऋतुपर्ण दवे    

विश्व स्वास्थ्य संघटन (डब्ल्यूएचओ) की २०१८ की एक रिपोर्टमें जीका, इबोला और सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम यानी सार्स कोरोना वायरस सरीखी एक नयी अज्ञात बीमारी डिजीज एक्सकी भी चर्चा थी। यहां ध्यान रखना होगा कि विश्व स्वास्थ्य संघटनने २०१८ में ही इसके सहित दस ऐसी वायरल बीमारियोंकी सूची भी जारी की जो महामारी पैदा कर सकते हैं। अब ऐसा माना जा रहा है कि कहीं कोरोना ही वही डिजीज एक्स तो नहीं। वैज्ञानिक और शोधकर्ता पीटर दासजक भी डब्ल्यूएचओकी उस टीमका हिस्सा थे, जिन्होंने यह सूची बनायी थी। उन्होंने तभी एक लेखमें लिखा था कि एक ऐसी संक्रामक बीमारी होगी जो तेजीसे उभरेगी। इसका आर्थिक विकास, जनस्वास्थ्यपर जबरदस्त असर पड़ेगा। शुरुआतमें इसे लेकर भ्रमकी स्थिति होगी। संक्रमण यात्रा, व्यापार एवं आपसी संपर्कोंके चलते तेजीसे पूरी दुनियामें फैलेगी। उन्होंने यहांतक कहा कि इससे मौतें साधारण मौसमी फ्लू से बहुत अधिक होंगी जो महामारी बन दुनियाके तमाम बाजारोंको झकझोर देगी। हुआ भी वही।

चीनके दक्षिण-पश्चिम पहाड़ी इलाकेमें कुछ गांव हैं जहां तांबेकी खदानें हैं। इनकी खाली जगहोंपर चमगादड़ोंके झुण्ड रहते हैं। सन् २०१२ में कुछ मजदूर खाद बनानेके लिए इनकी बीट इक_ा करने गये थे। इसी दौरान छह मजदूर एक रहस्यमयी बीमारीकी चपेटमें आ गये। पहले बुखार फिर खांसी और करीब पखवाड़ेभर बाद गहरा कत्थई बलगम आने लगा। इलाजके दौरान तीनकी मौत हो गयी जिससे हड़कंप मच गया। इस नयी बीमारीकी पतासाजीका जिम्मा वुहानके जैविक अनुसंधान केन्द्र इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजीको दिया गया। जिसने खदानमें चमगादड़ोंके सैंपल बटोरे। जांचमें कोरोना फैमिलीके कई विषाणुओंका पता चला, जबकि कईका मानना है कि इसी वुहान लैबसे कुछ दूर हुआनन पशु बाजार है। लैबसे लीक वायरस यहां पहुंचा। पहले पशुओंको चपेटमें लिया फिर उनसे इनसानोंतक। कोरोना वायरस लीकको लेकर अमेरिकी इंटेलिजेंसकी एक गुप्त रिपोर्टमें भी ऐसा ही जिक्र है कि नवंबर २०१९ में वुहान लैबके तीन शोधकर्ता एक नये और गंभीर इलाजके लिए अस्पतालमें भर्ती हुए थे। चीन भी मानता है कि कोरोना जैसे लक्षणोंसे बीमार होनेका पहला मामला ८ दिसंबर २०१९ को आया था। सभीको जोड़कर देखें तो कोरोनाकी शुरुआतके दावेमें दम है। लेकिन कोरोनाको लेकर भ्रम है क्योंकि उसी समय सार्स-कोविड-२ भी पैर पसार रहा था। कुल मिलाकर पीटर दासजककी थ्यौरी यहां काम कर रही है। सन् २०१८ में ही उन्होंने रहस्मय बीमारी डिजीज एक्सका नाम देकर यह इशारा किया था।

शक वुहानकी लैबपर बार-बार जानेकी वजहें भी हैं। कोरोना वैक्सीन बनानेवाले वैज्ञानिकोंने अपने शोधके दौरान वायरसमें कुछ फिंगरप्रिण्ट देखे। यह न केवल चौंकानेवाला सत्य था, बल्कि बड़ा तथ्य था कि हो-न-हो कहीं इनसानी करतूत तो नहीं। कई वैज्ञानिक उसी वक्त खुलासा करना चाहते थे तो कई बड़ी चीनी जांच संस्थाओं सहित दूसरोंने इसे नकारते हुए चमगादडज़नित बीमारीकी वजनदारी दे डाली। जाहिर है कहीं न कहीं कुछ तो हुआ था। घूम-फिरकर बात वहीं जा अटकती है। थोड़ा राजनीतिक घटनाक्रम भी समझना होगा। तबके अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प लगातार चीनपर आरोप मढ़ते रहे। लेकिन उनकी चर्चित कार्यप्रणालियोंके चलते गंभीरतासे तवज्जो नहीं मिली। अमेरिकामें राष्ट्रपति चुनावके दौरान कोरोनाका खूब असर दिखा और ट्रम्प राष्ट्रपतिका चुनाव हार गये। हां, यह कहना गलत होगा कि ट्रम्पकी हार कोरोना वायरससे नहीं हुई, बल्कि इस संकटसे निबटनेकी नाकामी जरूर कही जा सकती है। इस तरह कोरोनाने दुनियाके दारोगा कहलानेवाले देशको भी आईना दिखा दिया।

हालांकि काफी जोर आजमाइशके बाद विश्व स्वास्थ्य संघटनकी टीम भी वुहान लैब गयी और केवल तीन घण्टे रही। चीनी वैज्ञानिकोंकी मौजूदगी और दांवपेंचके साथ जांचके बाद लैबोरेटरी लीककी गुंजाइशोंको बहुत कम बताया। टीमको लैबके तमाम जरूरी दस्तावेज मांगनेपर भी नहीं दिखाये गये। संघटन प्रमुख डा. टेड्रोस घेब्रेससने भी माना कि कोरोनाके लैब लीकेजकी गहराईसे पड़ताल नहीं हो सकी। टीम न वह खदान पहुंच सकी जहांसे चमगादड़की बीट इक_ी की गयी। न ही वहांके लोगोंके एंटीबॉडी टेस्ट और जानवरोंतककी जांच ही करा पायी।

इधर जो बाइडेनके अमेरिकी राष्ट्रपति बननेके चार महीने बाद ९० दिनोंमें कोरोना वायरसके शुरुआत होनेकी निर्णायक जांचके आदेशसे कहीं न कहीं न ट्रम्पके दावोंको न केवल बल मिला, बल्कि चीनकी हेकड़ीको भी ठेंगा मिला। जाहिर है चीन चिढ़ा है, उसपर शककी तमाम गुंजाइशें अभी खत्म नहीं हुईं। अमेरिकाके सबसे बड़े विषाणु विज्ञानी एंथनी फाउची भी मानते हैं कि यकीनकी गुंजाइश ही नहीं है कि कोरोना वायरस स्वाभाविक रूपसे जन्मा हो। चीन बताता क्यों नहीं कि लैबमें क्या हुआ था। पूरी जांच तबतक नहीं रुके जबतक कि इसकी तहतक न पहुंच जायं। अमेरिकी खुफिया एजेंसियोंके पास भी पुख्ता सुबूतकी बात कही जा रही है जिसमें वुहान लैबमें तीन लोगोंके गंभीर रूपसे संक्रमित होनेको अबतक राज रखा गया, बल्कि वायरसके गंभीर खतरोंसे आगाह करानेवाले ह्विïसल ब्लोअर डा. ली वेलियांगका बुरा हश्र और संदिग्ध परिस्थितियोंमें इससे मौतके कारण भी हैं।

बीते डेढ़ बरससे कोरोनाने पूरी दुनियामें तबाही मचा रखी है। करोड़ोंके संक्रमित होने और लाखोंकी मौतके बाद भी शककी सुई वुहानपर ही बने रहनेकी तमाम वजहोंके बीच कोरोनाके ओरिजिनका सवाल, सवाल ही बना हुआ है। इसको लेकर तमाम तरहके भ्रम भी लगातार फैलाये जा रहे हैं। बीमारीकी उत्पत्तिको लेकर विकसित, विकासशील और तमाम तरहकी वैज्ञानिक और शोध तकनीकोंके बाद भी दुनिया पहली बार इतनी भ्रमित है। शायद इसीलिए कि कोरोना बहुरूपिया है। वह चकमा देना जानता है। परिस्थितियोंके अनुसार अपना रूप और आक्रमणका तरीका बदल लेता है। इनसानके शरीरपर अलग-अलग तरहके प्रभावोंका असर डाल चपेटमें लेकर जानपर भारी पड़ता है। बस यही सवाल दुनियाभरमें अहम है कि संक्रमणकी डोर वुहानके लैबसे निकल कोरोनारूपी कठपुतली बन चीनकी अंगुलियोंपर तो नहीं नाच रही और इस बहुरूपियेका असल मकसद जैविक युद्ध तो नहीं।