पीठ ने याचिकाकर्ताओं के उस दावे को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि घटना की तारीख पर मुस्लिम लड़की 16 साल पांच महीने की थी और यौवन की आयु प्राप्त कर चुकी थी। ऐसे में मुस्लिम पर्सनल ला के तहत वह बालिग थी और ऐसे में यह मामला पोक्सो अधिनियम के दायरे से बाहर है। हालांकि, पीठ ने कहा कि पोक्सो अधिनियम 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की सुरक्षा करता है और मुस्लिम पर्सनल ला का यह प्रथागत कानून विशिष्ट नहीं है।
पीठ ने कहा कि पोक्सो अधिनियम का उद्देश्य बच्चों की कोमल उम्र को सुरक्षित करने के साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि उनके साथ दुर्व्यवहार न हो। प्राथमिकी के अनुसार याचिकाकर्ता ने सगाई के बाद पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध बनाए और बाद में उससे शादी करने से इन्कार कर दिया।