नई दिल्ली, । पंजाब शब्द फारसी के शब्दों पंज यानी पांच और आब यानी (पानी) के मेल से बना है। पांच नदियों वाले इस क्षेत्र में सतलुज, रावी, व्यास, चिनाब और झेलम नदियां है। लेकिन पांच नदियों वाले इस क्षेत्र ने बीते चार-पांच दशकों से दो पार्टी के बीच के मुकाबले वाले ट्रेंड को ही अधिकांश स्थितियों में बरकरार रखा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पंजाब 2022 के चुनावों में इस ट्रेंड को तोड़ पाएगा।
अगर पंजाब विधानसभा चुनाव के 1969 से 2017 तक के आंकड़ों को देखें तो एक बात पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है कि यहां पर चुनाव में मुकाबला दो पार्टियों के बीच ही सिमट कर रह जाता है। 1967 के चुनावों में कांग्रेस ने 48 सीट जीती तो जेएसी (अकाली दल संत फतेह सिंह ग्रुप ने 24 सीट जीती थी तो अकाली दल मास्टर तारा सिंह ग्रुप ने 2 सीट जीती थी) ने 26 सीट जीती थी। शिरोमणि अकाली दल ने 1969 के चुनावों में 43 सीट जीती थी तो कांग्रेस ने 38 सीट पर विजय हासिल की थी। 1972 में कांग्रेस ने दमदार प्रदर्शन कर 66 सीटों पर पताका लहराई तो शिरोमणि अकाली दल 24 सीटों तक सिमट कर रह गई। 1977 में शिरोमणि अकाली दल ने 58 सीटें जीती तो जेएनपी ने 25 सीट जीती। 1992 में कांग्रेस ने 87 सीट पर अपना परचम लहराया तो बहुजन समाज पार्टी ने पंजाब में नौ सीट जीत अपना दमखम दिखाया। 1997 में शिरोमणि अकाली दल ने 75 सीटों पर जीत की धमक दिखाई तो 13 सीटों पर बीजेपी ने फतेह हासिल की। वहीं 2017 के चुनावों में कांग्रेस 77 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही तो बीस सीटों पर आम आदमी पार्टी ने विजय पाई।