पटना

पटना: कोरोनाकाल का बना अनूठा दस्तावेज


अखबारों में छपी तस्वीरों से हुआ डॉक्युमेंटेशन, सरकारी स्कूल के पुस्तकालयाध्यक्ष का नवाचार

(आज शिक्षा प्रतिनिधि)

पटना। हताशा के दौर में एक सरकारी स्कूल के पुस्तकालयाध्यक्ष ने नवाचार करते हुए कोरोनाकाल का दस्तावेजीकरण किया है। अपने ढंग का यह अनूठा दस्तावेजीकरण अखबारों में कोरोनाकाल में छपी तस्वीरों की कतरनों से किया गया है। हर तस्वीर की कहानी उसके नीचे का परिचय कह रही है।

साल भर से चल रहे कोरोनाकाल पर अपनी रचनात्मकता का रंग चढ़ाने वाले युवा पुस्तकालयाध्यक्ष राजेश कुमार सिंह सारण जिला मुख्यालय छपरा के काशीबाजार के रहने वाले हैं। पटना विश्वविद्यालय से वर्ष 1999 में मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर तथा वर्ष 2007 में बैचलर इन लाइब्रेरी साइंस कर चुके राजेश कुमार सिंह की नियुक्ति वर्ष 2014 में पुस्तकालयाध्यक्ष के पद पर हुई। वे सारण जिले के एकमा हाई स्कूल में पदस्थापित होकर कार्यरत हैं।

राज्य में कोरोना ने पिछले साल यानी वर्ष 2020 के मार्च में अपने पांव पसारे। उसी समय से राजेश कुमार सिंह अखबारों में छप रहीं कोरोनाकाल की तस्वीरों को करीने से काट कर सादे कागज पर चिपकाने में लग गये। तस्वीर काटने में उसके नीचे छपी चित्र परिचय का पूरा ख्याल रख रहे हैं, ताकि हर तस्वीर अपनी कहानी खुद बयां करे। अब तक आठ सौ से भी ज्यादा तस्वीरें कोरोनाकाल के दस्तावेजीकरण का हिस्सा बन चुकी हैं। इनमें बिहार के साथ ही देश और दुनिया की तस्वीरें हैं, जो इस आपदा के दौरान मानव जीवन व समाज में आये व्यापक बदलावों को दर्शाती हैं। तस्वीरों के जरिये राजनीति, समाज, व्यापार, धर्म, कृषि एवं शहरी जीवन को सहेजने का प्रयास किया गया है।

राजेश कुमार सिंह बताते हैं कि इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों के साथ ही महामारियों पर शोध करने वाले शोधार्थियों एवं सामान्य जिज्ञासुओं के लिए उनका यह संकलन दिलचस्प हो सकता है। कक्षाओ में ‘आपदा प्रबंधन’ विषय को पढ़ाते समय भी रेफरेंस के स्रोत के रूप में इसका उपयोग किया जा सकेगा।

इसके पहले भी वे देश के तीन पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, प्रतिभा पाटिल एवं प्रणव मुखर्जी के शपथ से लेकर कार्यकाल पूरा करने तक की अखबार में छपी तस्वीरों का संग्रह कर चुके हैं। ऐसा ही काम वे हर साल आकर तबाही मचाने वाली बाढ़ पर भी कर चुके हैं। पिछले 25 सालों से कई अलग-अलग विषयों पर चाहे वह खेल हो, ओलम्पिक का इतिहास हो, अन्ना आंदोलन हो, बिहार का सोनपुर पशु मेला हो या कला-संस्कृति सरीखे आयोजन हों, उनके पास संग्रह मौजूद हैं। उनके पास सिक्कों के संग्रह भी हैं। ये संग्रह सिक्कों का इतिहास स्रोत के रूप में हैं। संग्रह में शामिल सिक्कों में सौ से ज्यादा ज्यादा दुर्लभ सिक्के हैं, जो अलग- अलग दौर से रू-ब-रू कराते हैं।