नई दिल्ली। आर्टिकल 370 अब इतिहास बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने आज (11 दिसंबर) जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के फैसले को बरकरार रखा है। पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud), जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने आर्टिकल 370 पर फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को राहत देते हुए कहा कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग हैं. इसकी कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें
- सबसे पहले सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा तीन फैसले दिए गए हैं।
- सीजेआई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति की घोषणा की वैधता पर फैसला देने की जरूरत नहीं है क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने इसे चुनौती नहीं दी है।
- सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की उन दलीलों को खारिज कर दिया कि राष्ट्रपति शासन के दौरान केंद्र द्वारा कोई अपरिवर्तनीय कार्रवाई नहीं की जा सकती।
- सीजेआई ने कहा कि राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य की ओर से केंद्र द्वारा लिए गए हर फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती।
- जम्मू-कश्मीर के पास देश के अन्य राज्यों से अलग आंतरिक संप्रभुता नहीं है: सीजेआई
- जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, यह संविधान के अनुच्छेद 1 और 370 में स्पष्ट है: सीजेआई
- CJI का कहना है कि संविधान का अनुच्छेद 370 अस्थायी था, इसे रद्द करने की राष्ट्रपति की शक्ति अभी भी मौजूद है।
- सीजेआई ने कहा कि राज्य में युद्ध की स्थिति के कारण अनुच्छेद 370 अंतरिम व्यवस्था थी।
- सीजेआई ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को कभी भी स्थायी निकाय बनाने का इरादा नहीं था।
- जब जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का अस्तित्व समाप्त हो गया, तो जिस विशेष शर्त के लिए अनुच्छेद 370 लागू किया गया था उसका भी अस्तित्व समाप्त हो गया: सीजेआई
- हमारा मानना है कि राष्ट्रपति द्वारा राज्य की नहीं बल्कि संघ की सहमति की मांग वैध है, भारतीय संविधान के सभी प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू हो सकते हैं: सीजेआई
- सीजेआई ने कहा, हम निर्देश देते हैं कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए संवैधानिक आदेश जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति के प्रयोग को वैध मानते हैं।
- सीजेआई ने कहा, हम जम्मू-कश्मीर से केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख बनाने के फैसले की वैधता को बरकरार रखते हैं।
- सीजेआई ने कहा कि राष्ट्रपति की शक्ति के प्रयोग के लिए परामर्श और सहयोग के सिद्धांत का पालन करना आवश्यक नहीं था
- सीजेआई से सहमति जताते हुए जस्टिस एसके कौल ने कहा कि अनुच्छेद 370 का उद्देश्य धीरे-धीरे जम्मू-कश्मीर को अन्य भारतीय राज्यों के बराबर लाना था।
- अनुच्छेद 370 में जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की सिफारिश की आवश्यकता को बड़े इरादे को निरर्थक बनाने के तरीके से नहीं पढ़ा जा सकता: न्यायमूर्ति कौल।
- जम्मू कश्मीर में जल्द चुनाव के लिए कदम उठाए जाएं। 30 सितंबर 2024 तक जम्मू कश्मीर में चुनाव हों।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने क्या कहा?
सीजेआई ने सुनवाई करते हुए कहा,”जम्मू-कश्मीर के संविधान में संप्रभुता का कोई जिक्र नहीं था। हालांकि, भारत के संविधान की प्रस्तावना में इसका उल्लेख मिलता है।
सीजेआई ने कहा,”आर्टिकल 370 जम्मू-कश्मीर के संघ के साथ संवैधानिक एकीकरण के लिए था और यह विघटन के लिए नहीं था और राष्ट्रपति घोषणा कर सकते हैं कि अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त हो गया है।
डीवाई चंद्रचूड़ ने आगे कहा, “आर्टिकल 370 पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आर्टिकल 370 हटाने का फैसला बरकरार रहेगा। उन्होंने कहा कि 370 को हटाना संवैधानिक तौर पर सही है। राष्ट्रपति के पास फैसले लेने का अधिकार है।”
सीजेआई ने कहा,”हम निर्देश देते हैं कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए।”
डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा,” हम चुनाव आयोग को सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का निर्देश देते हैं।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश संजय किशन कौल और संजीव खन्ना ने अलग-अलग फैसले लिखे।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने कहा, “मैं कम से कम 1980 के दशक से मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच, रिपोर्ट करने और शांति बहाली के उपायों की सिफारिश करने के लिए एक निष्पक्ष समिति की स्थापना की सिफारिश करता हूं।”
संजय किशन कौल ने आगे कहा,”एक पूरी पीढ़ी अविश्वास के दौर में बड़ी हुई है। आर्टिकल 370 का उद्देश्य धीरे-धीरे जम्मू-कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों के बराबर लाना था।”
जस्टिस खन्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा, “आर्टिकल 370 असममित संघवाद का उदाहरण है। यह जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता का सूचक नहीं है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाने से संघवाद खत्म नहीं होगा।”
16 दिनों तक चली सुनवाई
बता दें कि केंद्र के प्रस्ताव को जम्मू-कश्मीर के कुछ दलों और अन्य लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस मामले में 16 दिन की सुनवाई के बाद कोर्ट ने 5 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
5 अगस्त 2019 का वो ऐतिहासिक दिन
केंद्र सरकार ने पांच अगस्त, 2019 को जम्मू और कश्मीर से संविधान के आर्टिकल 370 को हटाने के लिए एक बिल को संसद से पेश किया था, जिसे मंजूरी मिलने के बाद आर्टिकल 370 निरस्त हो गया।