सैन्याधिकारियों ने बताया कि जून 2020 में एएलसी पर सैन्य गतिरोध शुरु होने के तुरंत बाद चीन ने अपने सूचना तंत्र को मजबूत बनाने के लिए अपने इलाके में 5जी नेटवर्क की बहाली के लिए फाइबर आप्टिकल केबल बिछाई है। इस समय चीन पूर्वी लद्दाख में एलएसी के साथ सटे अपने पूरे क्षेत्र में अपने पूरे सूचना और निगरानी तंत्र को 5जी तकनीक के अनुरूप बना रहा है। मौजूदा परिस्थितियों में लद्दाख के कुछेक इलाकों में ही 4जी नेटवर्क की सुविधा उपलब्ध है। लद्दाख के अधिकांश हिस्सों में थ्री जी नेटवर्क ही है और वह भी पूरी तरह कारगर नहीं है। लद्दाख के अग्रिम इलाकों में सेना अपने सूचना तंत्र को सुरक्षित बनाए रखने के लिए फिलहाल रेडियाे फ्रिक्वेंसी और सैटलाइट तकनीक पर ही निर्भर है। इस पूरे क्षेत्र मे एक सुरक्षित सूचना तंत्र को विकसित करने और डेटा सेवा के लिए 4जी और 5जी तकनीक जरुरी हो चुकी है।
संबंधित सैन्याधिकारियों के मुताबिक, भारतीय सेना ने भी अपनी आपरेशनल जरूरतों को ध्यान में रखते हुए 4जी और 5जी तकनीक पर आधारित अपना मोबाइल सेल्युलर नेटवर्क तैयार करने का फैसला किया है। सैन्य प्रशासन ने इसके आरएफआई रिक्वेस फार इन्फार्मेशन जारी करते हुए, उच्च पर्वतीय इलाकों में विशेषकर समुद्रतल से करीब 18 हजार फुट की ऊंचाई पर मोबाइल फोन नेटवर्क उपलब्ध कराने में समर्थ कंपनियों से निविदाएं भी आमंत्रित की है। उन्होंने बताया कि जम्मू कश्मीर के अलावा पूर्वाेत्तर के कुछ हिस्सों में सेना पहले से ही अपना मोबाइल सेल्युलर नेटवर्क एमसीसीएस इस्तेमाल कर रही है। यह सीडीएम तकनीक पर आधारित है।
इस परियोजना को मर्करी ब्लेज के कोड नाम से जनवरी 2006 में शुरु किया गया था और 2007 में नगरोटा, जम्मू स्थित सेना की 16 कोर के कार्याधिकार क्षेत्र में इसके सफल ट्रायल के आधार पर पूरे प्रदेश में सैन्य प्रतिष्ठानों और अग्रिम सैन्य चौकियों तक बहाल किया गया था,लेकिन अब यह तकनीक पुरानी हो चुकी है और लद्दाख में इसका विस्तार भी नहीं था। इसलिए लद्दाख में सेना अपने एमसीसीएस के लिए 4जी और 5जी नेटवर्ग के विकल्प को अपना रही है।
उन्होंने बताया कि अगर परिस्थितियां अनुकूल रहती हैं तो प्रस्तावित नेटवर्क के लिए ठेका जारी होने के लगभग एक वर्ष के भीतर लद्दाख में सेना का अपना 4 व 5 जी तकनीक पर आधारित एमसीसीएस होगा। सेना ने अपनी अारएफआई में स्पष्ट किया है कि 4जी और 5जी नेटवर्क प्रदान करने वाली कंपनियों द्वारा प्रदान किए जाने वाले उपकरण वैश्विक मानकों के मुताबिक हों । इसके अलावा यह पूरी तरह सुरक्षित होना चाहिए यह सेना के अपने उपकरणों के साथ भी एकीकृत किए जाने योग्य हो।