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बंगाल में BJP और तृणमूल कांग्रेस के बीच दलितों को लुभाने की होड़


पश्चिम बंगाल में जारी विधानसभा चुनाव के बीच यहां तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दलित समुदायों को लुभाने की भरपूर कोशिश कर रही हैं क्योंकि ये समुदाय इस चुनावी लड़ाई में निर्णायक साबित हो सकते हैं। राज्य के मतदाताओं में से 23.5 फीसदी दलित समुदाय से हैं और इनकी आबादी में से 25-30 फीसदी मतदाता 294 सदस्यीय विधानसभा में करीब 100 से 110 सीटों में परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं।

बंगाल में जहां 34 वर्ष तक वाम दलों के शासन में चुनावी विमर्श पर वर्ग संघर्ष का साया रहा और अब तृणमूल कांग्रेस तथा भाजपा दोनों दलितों एवं अन्य पिछड़ा वर्गों के मत हासिल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे। कूच बिहार और उत्तर बंगाल के अन्य सीमावर्ती जिलों में रहने वाले राजबंशियों तथा पूर्ववर्ती पूर्वी पाकिस्तान से आये मतुआ शरणार्थियों एवं उनके वंशजों का दक्षिण बंगाल में 30-40 सीटों पर प्रभाव है। वे पश्चिम बंगाल में दो सबसे बड़े दलित समुदाय हैं जिन्हें लुभाने के लिए तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों लगे हुए हैं।

दोनों दल दलितों और अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) के अधिकारों की बात कर रहे हैं। राज्य में 68 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए तथा 16 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही सत्ता में आने पर महिष्य, तेली, तामुल और साहा जैसे समुदायों को मंडल आयोग की सिफारिशों के अनुसार ओबीसी की सूची में शामिल करने का वादा किया है।तृणमूल कांग्रेस ने जहां इस चुनाव में 79 दलित प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है, वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मतुआ संप्रदाय के आध्यात्मिक गुरू हरिचंद ठाकुर के जन्मस्थान बांग्लादेश के ओराकांडी में एक प्रसिद्ध मंदिर का दौरा किया था। तृणमूल कांग्रेस के एक उम्मीदवार द्वारा कथित तौर पर दलितों की तुलना भिखारियों से करने का मुद्दा भी चुनाव में चर्चा का विषय बना हुआ है।