नई दिल्ली, : यूक्रेन जंग में बेलारूस पहली बार रूसी सेना के सहयोग के लिए आगे आया है। यूक्रेन जंग में कई देश अमेरिका व पश्चिमी देशों के साथ जुड़े हैं तो कुछ तटस्थता की नीति का पालन कर रहे हैं। बेलारूस ने भी रूस और यूक्रेन संघर्ष में तटस्थता की नीति का अनुसरण किया, लेकिन रूसी मिसाइल हमले के बाद बेलारूस के राष्ट्रपति ने रूसी सैनिकों के लिए अपनी जमीन देने का ऐलान किया है। आखिर बेलारूस के फैसले के लिए पीछे बड़ी वजह क्या है। क्या बेलारूस ने रूसी राष्ट्रपति के दबाव में आकर यह फैसला लिया है। बेलारूस और नाटो संगठन के बीच क्या मतभेद हैं। इस पर विशेषज्ञों की क्या राय है।
आखिर बेलारूस रूस को क्यों दे रहा है समर्थन
1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि सोवियत संघ से अलग होने के बाद बेलारूस अपनी अर्थव्यवस्था के मामले में पूरी तरह से रूस पर ही निर्भर है। इतना ही नहीं बेलारूस को रूस सबसे ज्यादा कर्ज भी देता है। हालांकि, रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने एक रणनीति के तहत वर्ष 2021 में बेलारूस को धमकी भी दी थी। उन्होंने कहा कि बिना रूस में शामिल हुए हम बेलारूस को कम कीमत पर गैस नहीं दे सकते हैं। उन्होंने कहा था कि रूस लंबे समय तक बेलारूस को सब्सिडी देने की गलती नहीं कर सकता, क्योंकि वह रूस का हिस्सा नहीं है।
2- प्रो पंत का कहना है कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन बेलारूस को रूस में शामिल होने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दबाव बनाते रहे हैं। रूसी राष्ट्रपति पुतिन के इस नजरिए के बाद बेलारूस ने चीन और पश्चिम देशों के साथ निकटता भी बढ़ाई। बेलारूस, नाटो संगठन के साथ अपने रिश्तों में सुधार की कोशिश कर रहा है। इस कड़ी में अमेरिका ने भी बेलारूस के साथ राजनयिक प्रतिबंध हटा चुका है। बेलारूस के इस कदम को रूस पर निर्भरता कम करने की कोशिश के तौर पर देखते हैं। प्रो पंत का कहना है कि यूक्रेन जंग में बेलारूस पर तटस्थता की नीति को छोड़ने का दबाव रहा होगा।
3- प्रो पंत का कहना है कि नाटो संगठन के साथ रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा को देखते हुए राष्ट्रपति पुतिन संगठन से जुड़े पूर्व सोवियत संघ के गणराज्यों पर पैनी नजर रखते हैं। बेलारूस की सीमा नाटो संगठन से जुड़े तीन सदस्य देशों की सीमा से लगती है। इनमें लातविया, लिथुआनिया और पोलैंड शामिल हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि, आजादी के बाद काफी हद तक यूक्रेन की तरह बेलारूस की रणनीति स्वतंत्र रही है। यही कारण है कि बेलारूस कभी नाटो संगठन में शामिल नहीं हुआ। बेलारूस की रूस पर निर्भरता से उसका झुकाव रूस की ओर है।
4-वर्ष 2014 में क्रीमिया प्रायद्वीप को रूस में शामिल किए जाने के बाद बेलारूस में पुतिन को लेकर संदेह बढ़ा है। वर्ष 2021 में बेलारूस और रूस के नेताओं ने यूनियन स्टेट आफ रूस और बेलारूस की 20वीं वर्षगांठ मनाई थी। दोनों देशों के बीच यह करार वर्ष 1999 में हुआ था। हालांकि, यूनियन स्टेट आफ रूस और बेलारूस के विलय का मामला कागज पर ही रह गया। बेलारूस की बड़ी आबादी एक स्वतंत्र देश के रूप में अपनी मान्यता चाहती है। हालांकि, रूसी राष्ट्रपति सत्ता में बने रहने के लिए रूस का विस्तार चाहते हैं। क्रीमिया के बाद यूक्रेन पर हमले को इस रूप में भी देखा जा सकता है।
तटस्थता की नीति छोड़ रूस के साथ आया बेलारूस
बेलारूस काफी समय तक अपने को तटस्थ देश कहता रहा है। हालांकि, शंकाओं के साथ रूस के साथ उसकी निकटता रही है। अब बेलारूस ने यूक्रेन जंग में अपनी स्थिति को स्पष्ट कर दिया है। बेलारूस के रारूट्रपति एलेक्जेंडर लुकाशैंको ने कहा कि वह रूसी सेना के लिए अपनी जमीन देने को तैयार है। रूस को मदद के ऐलान के बाद यूरोप में एक बड़े युद्ध का खतरा उत्पन्न हो गया है। बेलारूस के राष्ट्रपति एलेक्जेंडर ने कहा है कि उनका देश रूस की सेनाओं को अपने यहां बैरक बनाने और अभियान छेड़ने के लिए जमीन प्रदान करेगा। इससे नाटो और रूस के बीच तनाव और बढ़ गया है। इसकी प्रतिक्रिया में नाटो ने कहा है कि हम इसके लिए तैयार हैं। नाटो महासचिव स्टाल्टेनबर्ग ने कहा कि यूक्रेन की मदद से पीछे नहीं हटेंगे।