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भारत में पारिवारिक संरचना के संदर्भ में वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित किया जाना कितना उचित है?


सिद्धार्थ मिश्र। दिल्ली उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की पीठ ने हाल ही में दिए अपने निर्णय में वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित किए जाने के विषय पर भिन्न राय प्रकट की है। जस्टिस राजीव शकधर व जस्टिस सी हरी शंकर की पीठ में दोनों न्यायाधीशों ने अलग अलग निर्णय दिए हैं। अपने निर्णय में जस्टिस राजीव शकधर ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के उस अपवाद को असंवैधानिक घोषित कर दिया जो पति द्वारा 18 साल से ज्यादा उम्र की अपनी पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना बनाए संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर करता है।

 

अपने निर्णय में उन्होंने सहमति के पहलू पर बल देते हुए सहमति वापस लेने के अधिकार को महिला के जीवन जीने और स्वतंत्रता के अधिकार में अंतर्निहित उसके शारीरिक और मानसिक सुरक्षा के अधिकार का मूल हिस्सा बताते हुए 162 साल पुराने कानून में परिवर्तन की बात कही। उन्होंने इंगित किया कि वैवाहिक दुष्कर्म शारीरिक जख्म देने के साथ ही पीड़ित के मस्तिष्क पर गहरे घाव डालता है जो अपराध घटने के वर्षों बाद भी उसके साथ रहते हैं। इसके विपरीत जस्टिस सी हरिशंकर ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की दलील को यह कह कर अस्वीकार कर दिया कि कानून में बदलाव सामाजिक, सांस्कृतिक और वैधानिक पहलुओं को संज्ञान में रखते हुए विधायिका द्वारा लाया जाना चाहिए।