(ऋषिकेश पाण्डेय)
मऊ।मात्र दस रूपये के चक्कर में आरपीएफ का जवान कई जिंदगियों को मौत के मुंह में धकेल दिया। फटी-पुरानी वर्दी में कर्तव्यों से विमुख रेलवे सुरक्षा बल का यह जवान चंद रूपयों की लालच में इस कदर अंधा हो गया था कि कब ट्रेन चल दी,उसे पता भी नहीं चल पाया और जब पता भी चला तो वह मूक दर्शक बनकर किसी तमाशबीन की तरह खङा रहा।ऐसे ही भ्रष्ट कर्मचारी दुर्घटनाओं के सबब बनते हैं।बताया जाता है कि शुक्रवार को देर सायं लगभग 7.35बजे बलिया-शाहगंज सवारी गाङी मऊ जंक्शन के प्लेटफार्म नम्बर चार पर खङी थी।जिसके इंजन से सटे पार्सल यान में आलमारी,रेफ्रिजरेटर,वाशिंग मशीन आदि सामान बकायदे बुक कर लादे गये थे,जिन्हें मऊ में ही उतारना था।उतारने के लिए आधा दर्जन रेलकर्मी भी एक आरपीएफ के जवान के साथ पहुंचे थे।आरपीएफ जवान की जिम्मेदारी यह थी कि अपनी मौजूदगी में पार्सल यान से सामानों को उतरने के बाद सील कराकर ट्रेन को गंतव्य की ओर रवाना करने के लिए ‘आल राइट ओके ‘ कहता और ट्रेन गंतव्य को रवाना होती।लेकिन,आरपीएफ का जवान अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की जगह धन उगाही के कार्यों में संलिप्त दिखा।इस बीच अभी सामान आधे-अधूरे ही उतरे थे कि ट्रेन खुल गयी।यह देखकर रेल कर्मी चलती ट्रेन से ही सामानों को धङाधङ फेंकने लगे,जिससे कई सामान तो क्षतिग्रस्त हुआ ही।खुद रेलकर्मियों की जान भी खतरे में पङ गयी और वे चलती ट्रेन से कूदकर अपनी जान जोखिम में डाल दिये।बहरहाल,ऐसा होते देख अन्य यात्री जोर-जोर से चिल्लाने लगे।जिससे ट्रेन कुछ दूर चलकर रूक गयी।यह सब होने के बावजूद आरपीएफ के जवान की सेहत पर कोई फर्क नहीं पङा और वह धन उगाही में ही लगा रहा।जिससे ट्रेन का पार्सल यान बिना सील हुए ही मऊ से रवाना हो गया। इसके पूर्व दूसरी ओर ट्रेन नम्बर 11082 गोरखपुर-लोकमान्य तिलक टर्मिनस ट्रेन भी प्लेटफॉर्म नम्बर दो पर लगभग आधा घंटा तक खङी रही और उसके सामने रेल लाइन पर कतिपय लोग बैठे रहे।लेकिन,उस दौरान भी वह आरपीएफ का जवान रेल लाइन पर बैठे लोगों को हटाने की बजाय अपने धन उगाही के कार्यक्रम में ही जुटा दिखा।सवाल यह उठता है कि जिन आरपीएफ के जवानों के कंधे पर रेलवे ने संरक्षा,सुरक्षा की जिम्मेदारी दे रखी है,वे दायित्वों से विमुख होकर धन उगाही में जुटे रहेंगे और जिम्मेदार अधिकारी आंख पर पट्टी बांधे रहेंगे तो रेल दुर्घटना होने पर आखिर दोष किसका होगा?