Latest News नयी दिल्ली राष्ट्रीय

मतदान से पहले प्रत्याशी ने दाखिल की याचिका; नतीजे आने पर जीता, बाद में हारने वाला पहुंचा था कोर्ट, गजब है EVM की ये कहानी


नई दिल्ली। अमेरिकी उद्योगपति एलन मस्क के एक बयान के बाद देश में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) पर राष्ट्रव्यापी बहस शुरू हो गई है। दरअसल, एलन मस्क ने ईवीएम के हैक होने की आशंका जताई। इसके बाद राहुल गांधी से अखिलेश यादव तक ने इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया दी। कोई सियासी दल ईवीएम के पक्ष में तो कोई विपक्ष में खड़ा है। मगर इस बीच आपको ईवीएम से जुड़ी रोचक कहानी बताने जा रहे हैं।

जब पहली बार ईवीएम को मिली चुनौती

19 मई 1982 में पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल केरल के 70-परूर विधानसभा निर्वाचन-क्षेत्र के 50 मतदान केंद्रों पर प्रायोगिक आधार पर किया गया था। मगर एक प्रत्याशी सिवान पिल्लई ने मतदान से पहले ही ईवीएम के इस्तेमाल को चुनौती दे दी थी। हालांकि केरल उच्च न्यायालय ने उसकी चुनौती स्वीकार नहीं किया।

चुनौती देने वाला ही निकला विजेता

दिलचस्प यह है कि ईवीएम को चुनौती देने वाले पिल्लई रिजल्ट घोषित होने पर विजेता बने। मगर विवाद यही पर खत्म नहीं हुआ। इसके बाद पिल्लई के प्रतिद्वंद्वी ने ईवीएम के इस्तेमाल को चुनौती दी। इसके बाद 1984 में हाईकोर्ट के आदेश पर यहां मतपत्रों से चुनाव कराया गया। बता दें कि यहां पायलट परियोजना के आधार पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया था।

ईवीएम के विरुद्ध क्यों आया था फैसला?

हाईकोर्ट ने 1984 में अपना निर्णय ईवीएम के विरुद्ध विधिक आधार पर दिया था। दरअसल, तब तक ईवीएम के इस्तेमाल का कोई कानूनी आधार नहीं था। हाईकोर्ट ने ईवीएम की मौलिक उपयुक्तता पर कोई टिप्पणी नहीं की थी। यानी की ईवीएम मतदान के लिए उपयुक्त थी, लेकिन इस्तेमाल से पहले कानून में संसोधन जरूरी था।

1998 में बनी आम सहमति

सरकार ने 1988 में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन कर नई धारा 61क जोड़ी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में इस धारा को संवैधानिक और विधिमान्यता प्रदान की। 1998 में ईवीएम के इस्तेमाल पर आम सहमति बनी। इसके बाद इसी साल मध्य प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान की 16 विधानसभा सीटों पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया था।