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यूपी की इस लोकसभा सीट पर भाजपा नहीं समझ पाई स‍ियासी समीकरण!


सीतापुर। 35 वर्ष बाद कांग्रेस ने सीतापुर संसदीय सीट पर वापसी कर ली। कांग्रेस के राकेश राठौर ने भाजपा उम्मीदवार राजेश वर्मा को 89,641 मतों से हरा दिया। राकेश को 5,31,138 और राजेश को 4,41,497 मत मिले। इससे पहले 1989 में राजेन्द्र कुमारी बाजपेई सीतापुर संसदीय क्षेत्र की बतौर कांग्रेस उम्मीदवार सांसद चुनी गई थीं। वहीं, बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार महेन्द्र सिंह यादव को सिर्फ 99,364 मत ही मिले। छोटे दलों और निर्दलीय प्रत्याशी दस हजार का आंकड़ा नहीं पार कर पाए।

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कांग्रेस का शुरुआती चुनाव पिछले कई चुनावों की तरह ही रहा। तमाम झंझावातों के बीच नकुल दुबे का टिकट काटकर राकेश राठौर को प्रत्याशी बनाया गया। उन्होंने खामोशी के साथ चुनाव प्रचार किया। भारतीय जनता पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं ने उनके प्रयासों को बहुत गंभीरता से नहीं लिया।

 

सत्ताधारी दल के नेता और कार्यकर्ता केंद्र और प्रदेश सरकारी की योजनाओं का गुणगान करके जीत का ताना-बाना बुनने में लगे रहे। समय के साथ कांग्रेस व सहयोगी समाजवादी पार्टी की मतदाताओं में पैठ उभरकर सामने आने लगी। भाजपा को भी इसका आभास हो गया। कांग्रेस को लेकर भाजपा नेता हमलावर हुए, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। मतदाता बदलाव का मन बना चुके थे। इसका नतीजा कांग्रेस की जीत की तौर पर दिखा।

बड़े नेताओं की मंशा नहीं समझ सकी जिला इकाई

पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह शुरुआत से ही प्रदेश की जनसभाओं में कांग्रेस और सपा के समन्वय को निशाने पर लेने लगे थे। भाजपा उम्मीदवार के समर्थन में लहरपुर में आयोजित जनसभा में अमित शाह ने आरक्षण को लेकर कांग्रेस को घेरा था। इसके बावजूद जिला इकाई की ओर से नुक्कड़ सभाओं में कांग्रेस को नहीं घेरा गया। राजेश वर्मा की जीत का दावा करके जनमानस को आंकड़ेबाजी की घुट्टी पिलाई जाती रही।

दो ध्रुवीय हो गया चुनाव

सीतापुर संसदीय सीट का चुनाव दो ध्रुवीय हो गया है। कांग्रेस के वादों पर जनता ने इस कदर यकीन किया कि बहुजन समाज पार्टी का कोर मतदाता भी पार्टी से विमुख हो गया। विमुख मतदाता ने कांग्रेस में अपने हित को संरक्षित होते देखा। उधर, कांग्रेस पिछड़ा वर्ग में भी सेंध लगाने में कामयाब रही।