राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने एक छोटे से गांव से जिंदगी शुरू की और आज देश के सर्वोच्च पद पर हैं। बाल दिवस के मौके पर उन्होंने राष्ट्रपति भवन में कई स्कूलों के बच्चों से बात की। इस दौरान उन्होंने अपने जीवन का संघर्ष भी बताया। उन्होंने कहा, हम लोगों के स्कूल में टेबल नहीं था, चेयर नहीं थी। यहां तक की फर्श भी इस तरह की टाइल वाली नहीं थी। राष्ट्रपति ने कहा, हम लोग बोरे पर बैठकर पढ़ाई करते थे। राष्ट्रपति ने उनसे मिलने आए छात्र और छात्राओं से भी उनके बारे में सवाल पूछे। बता दें कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू 1994 से 1997 तक रायरंगपुर के श्री अरबिंदो इंटीग्रेटेल एजुकेशन एंड रिसर्च में शिक्षिका के रूप में भी काम कर चुकी हैं। उन्होंने प्राथमिक विद्यालयों में भी शिक्षिका के रूप में कार्य किया। कह सकते हैं कि सार्वजनिक जीवन की शुरुआत ही उन्होंने शिक्षा के कार्य से की थी। राष्ट्रपति भवन पहुंचे एक एक बच्चे से मुर्मू ने पूछा, आप क्या बनना चाहते हैं? इसपर बच्चे ने जवाब दिया कि वह साइंटिस्ट बनना चाहता है। एक अन्य छात्र से राष्ट्रपति ने पूछा, अगर आपको प्रधानमंत्री बनने का मौका मिले तो आप क्या करेंगे? छात्रा ने जवाब दिया कि वह गलत को खत्म करने और देश को उठाने का कार्य करने की कोशिश करेगा। एक छात्रा ने उन्हें अपने स्कूल में आने का आमंत्रण भी दिया। एक छात्र ने जब उनसे कहा कि वह डिफेंस ऑफिसर बनना चाहता है तो राष्ट्रपति ने कहा कि इसके लिए मेंटली और फिजिकली फिट रहने की जरूरत है। इसी क्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा, जीवन के हर कदम पर कठिनाई है। लेकिन जीवन वन वे ट्रैफिक है। इसमें पीछे नहीं जाना चाहिए। बता दें कि द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं और पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं। ओडिशा के मयूरभंज में उनका जन्म हुआ था। वह आदिवासी जातीय समूह संथाल परिवार से ताल्लुक रखती हैं। सातवीं कक्षा तक वह ओडिशा के छोटे से गांव उपरबेड़ा के एक छोटे से स्कूल में ही पढ़ती थीं। इसके बाद की पढ़ाई उन्होंने राजरंगपुर में की। उनका राजनीतिक जीवन एक पार्षद के रूप में शुरू हुआ था। वह झारखंड की राज्यपाल भी रह चुकी हैं।
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