वोटर ही पार्टियों और उम्मीदवारों का फैसला करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इस मसले पर विशेषज्ञ कमेटी का गठन सही होगा। लेकिन उससे पहले कई सवालों पर विचार जरूरी है। 2013 के सुब्रमण्यम बालाजी फैसले की समीक्षा भी जरूरी है। हम यह मामला 3 जजों की विशेष बेंच को सौंप रहे हैं। इस मामले में 2 हफ्ते बाद सुनवाई होगी।
सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर अदालत का यह फैसला आया है। कोर्ट ने कहा कि ‘फ्रीबीज’ टैक्सपेयर का महत्वपूर्ण धन खर्च किया जाता है। हालांकि सभी योजना पर खर्च फ्रीबीज नहीं होते। यह मसला चर्चा का है और अदालत के दायरे से बाहर है।
अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि सरकार को सर्वदलीय बैठक बुलाकर चर्चा करनी चाहिए। इसके लिए कमेटी बनाना अच्छा रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ सवाल हैं जैसे कि न्यायिक हस्तक्षेप का दायरा क्या है? क्या अदालत किसी भी योजना को लागू करने योग्य आदेश पास कर सकती है? समिति की रचना क्या होनी चाहिए? कुछ पार्टी का कहना है कि सुब्रमण्यम बालाजी 2013 के फैसले पर भी पुनर्विचार की जरूरत है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि फ्रीबिज एक ऐसी स्थिति पैदा कर सकती है, जहां राज्य को दिवालिया होने की ओर धकेल दिया जाता है। उन्होंने कहा कि ऐसी मुफ्त घोषणा का इस्तेमाल पार्टी की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह राज्य को वास्तविक उपाय करने से वंचित करता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्वाचन लोकतंत्र में निर्वाचक मंडल के पास सच्ची शक्ति है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मुफ्त रेवड़ियों को महत्वपूर्ण और गंभीर मुद्दा बताते हुए इस पर व्यापक विचार विमर्श पर जोर दिया था। कोर्ट ने कहा कि केंद्र इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुला कर चर्चा क्यों नहीं करता। हालांकि कोर्ट के इस सवाल का केंद्र की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तत्काल जवाब देते हुए कहा कि पहले ही कई राजनैतिक दल कोर्ट में आ चुके हैं जो मुफ्त रेवड़ियों पर नियंत्रण का विरोध कर रहे हैं ऐसे में हो सकता है सर्वदलीय बैठक में नतीजा न निकले।