श्रीलंका में वहां की जनता और सिविल सोसाइटी ने चीन के खिलाफ बगावत कर दी है । श्रीलंका में सिविल सोसाइटी, विपक्ष, लेबर यूनियन और आम जनता की तरफ से श्रीलंकन सुप्रीम कोर्ट में दर्जनों याचिकाएं डाली गई हैं जिनमें श्रीलंका में बनने वाले चीनी पोर्ट का विरोध किया गया है। दरअसल, श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में चीन सिटी पोर्ट बनाने वाला है । श्रीलंका के लोगों का कहना है कि सरकार ने देश की संप्रभुता को ताक पर रखकर चीन के साथ समझौता किया है। श्रीलंका के सुप्रीम कोर्ट में अब सोमवार को तमाम याचिकाओं पर सुनवाई की जाएगी।
जानकारी के अनुसार श्रीलंका की महिन्द्रा राजपक्षे सरकार ने पिछले हफ्ते श्रीलंकन संसद में कोलंबो पोर्ट सिटी इकोनॉमिक कमीशन नाम का एक बिल पेश किया जिसमें कोलंबो में समंदर किनारे 1 अरब 40 करोड़ रुपए की लागत से एक पोर्ट सिटी बनाने का प्रस्ताव है। इस बिल का पूरे श्रीलंका में भारी विरोध किया जा रहा है। श्रीलंका के लोगों का कहना है कि इस बिल के जरिए श्रीलंका में चीन को असीमित शक्तियां दी जा रही हैं और ये बिल श्रीलंका की संप्रभुता के लिए खतरा है इसलिए ये बिल रद्द होना चाहिए।
इस विवाद पर श्रीलंका की सरकार का कहना है कि इस बिल में कुछ भी गड़बड़ नहीं है और ये देश में विदेश निवेश है। उधर, विपक्षी पार्टियों का कहना है कि इस बिल के जरिए श्रीलंका चीन के जाल में फंस जाएगा। श्रीलंका की विपक्षी पार्टियां जिनमें मुख्य विपक्षी पार्टी यूनाइटेड पीपल्स फ्रंट, जनता विमुक्ति पेरमूना, यूनाइटेड नेशनल पार्टी के साथ साथ कोलंबे स्थित एनजीओ सेंटर फॉर पॉलिसी अल्टरनेटिव्स औप मजदूरों के संगठनों ने चीन द्वारा बनने वाले पोर्ट का विरोध किया है। इन संगठनों ने श्रीलंका सरकार द्वारा प्रस्तावित बिल की संवाधिनकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
कोर्ट में इस बिल को चुनौती देते हुए कहा गया है कि इस बिल के जरिए श्रीलंका की संप्रुभता को सरकार ने खतरे में डाल दिया है। निवेश जरूरी मगर शर्तों के साथ निवेश जरूरी मगर शर्तों के साथ श्रीलंका की विपक्षी पार्टियों का कहना है कि देश में विदेश निवेश तो बेहद जरूरी है लेकिन किसी भी निवेश से देश की संप्रभुता खतरे में नहीं पड़नी चाहिए। श्रीलंका के एसजेबी के सांसद हर्षा दि सिल्वा का कहना है कि उनकी पार्टी चाहती है कि ये पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट कामयाब हो, ताकि देश में विदेश निवेश आए और देश का विकास हो, देश में टेक्नोलॉजी आए, लेकिन कोई भी निवेश संवैधानिक दायरे में ही होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सिटी पोर्ट डील एक लॉंग टर्म परियोजना है और कई सालों तक इसका काम चलने वाला है, लिहाजा विपक्षी पार्टियां चाहती हैं कि देश के संविधान के अनुरूप ही बिल होना चाहिए।