नारनौल। जिले कनीना कस्बे से सटे धनौंदा गांव में जन्में अभिनेता निर्देशक सतीश कौशिक के निधन से जिले में शोक की लहर फैल गई है। पप्पू पेजर, कैलेंडेर, मुत्तु स्वामी जैसे किरदारों के जरिये अमर हो चुके सतीश कौशिक पिछले चार दशक से मुंबई में ही रहे थे। हालांकि उन्होंने अपनी जड़ों को कभी नहीं भुलाया। कनीना-अटेली रोड स्थित महासर माता मंदिर में साल में दो बार जरूर आते थे।
महासर माता मंदिर में साल में दो बार माथा टेकने आते थे सतीश कौशिक
हरियाणा और हरियाणियों के लिए कुछ करने की लग्न हमेशा रहती थी। इंडियाज मोस्ट वांटेड की तर्ज पर हरियाणा के मोस्टवांटेड सीरियल बनाने की योजना पर वह अभी कार्य कर रहे थे। हरियाणा कला परिषद के निदेशक महेंद्रगढ़ के रहने वाले अनिल कौशिक ने बताया कि सतीश कौशिक से इस विषय पर लगातार बात चल रही थी। इस प्रोजेक्ट को अभी शुरू किया जाना था, लेकिन सतीश कौशिक के जाने से हमारे इस प्रोजेक्ट के एक बार तो बड़ा झटका लगा है।
हरियाणा के लिए बहुत कुछ करने की तमन्ना थी
सतीश कौशिक का बचपन धनौंदा गांव में बीता है। सात फरवरी 2022 को दैनिक जागरण से सतीश कौशिक ने विशेष बातचीत की थी, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के अनुभव साझा किए थे। यह साक्षात्कार आठ फरवरी को प्रकाशित किया गया था। इस साक्षात्कार में उन्होंने कोरोना काल से उभरने पर खुशी जताते हुए महेंद्रगढ़ जिला और हरियाणा के लिए बहुत कुछ करने की तमन्ना जाहिर की थी, जो अधूरी रह गई है।
कौशिक नाम को अखबारों में मशहूर करना
उन्होंने बताया था कि कालेज की पढ़ाई के दिनों में गांव में अकेले सतीश कौशिक ही थे, जो उस समय अंग्रेजी समाचार पत्र पढ़ते थे। माता-पिता के आशीर्वाद और मनोबल ने उन्हें औरों से अलग बना दिया था। अखबार पढ़ते-पढ़ते सोचा कि एक दिन कौशिक नाम को अखबारों में मशहूर करना है। समय बदला। नेशनल स्कूल आफ ड्रामा से पास हुए। अगस्त 1979 में मुंबई चले गए। महेंद्रगढ़ जिले के छोटे से गांव धनौंदा में जन्मे सतीश कौशिक की सफलता का सफर बस यहीं से शुरू हो गया और अखबारों की सुर्खियों में भी बने।
हरियाणा में हिदी फिल्मों का क्रेज
सतीश कौशिक के पिता बनवारीलाल कौशिक हैरिसन ताला में बतौर सेल्समैन कार्य करते थे। उस समय दक्षिण हरियाणा पिछड़े हुए क्षेत्रों में शामिल था। महेंद्रगढ़ जिला तो वैसे भी सबसे कमजोर स्थिति में था। सतीश कौशिक ने बताया था कि हरियाणा में हिदी फिल्मों को लेकर बहुत ज्यादा क्रेज भी नहीं था। इन परिस्थितियों में उनके लिए बालीवुड में करियर चुनना अपने आप में बड़ी चुनौती थी। उनका यह हौंसला ही था कि आज वह किसी परिचय के मोहताज नहीं है।
मनोबल साथ चला और ख्वाब पूरा हुआ
हरियाणा में शायद उनका यह अंतिम साक्षात्कार था। इसमें उन्होंने कहा था कि मनोबल ऊंचा हो तो कोई भी सफलता हासिल हो सकती है। मैने कालेज दिनों में ठाना था कि एक दिन कौशिक नाम ही अखबारों में मशहूर करना है। यहीं मनोबल साथ चला और आज यह ख्वाब पूरा भी हो चुका है। सतीश कौशिक 14 सुपरहिट फिल्में बना चुके हैं और 150 फिल्मों में अपनी अदाकारी की अमिट छाप छोड़ चुके हैं।
कोरोना काल से काम हुआ था प्रभावित
उनके द्वारा पहली हिदी फिल्म रूप की रानी चोरों का राजा थीं। पिछले दिनों उन्होंने म्हारी छोरियां छोरों से कम नहीं हैं, हरियाणवी फिल्म बनाकर अपनी मातृभूमि से जुड़ाव बनाए रखा। कौशिक ने साक्षात्कार में यह भी बताया था कि कोरोना काल की वजह से थोड़ा कार्य प्रभावित जरूर हुआ है पर अब स्थिति सामान्य होने लगी है और हरियाणा व महेंद्रगढ़ जिले के लिए बहुत कुछ करने की तमन्ना को अभी पूरा करना है। लेकिन उनकी यह तमन्ना शायद अब अधूरी रह गई है।