नई दिल्ली, : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने भट्ट की याचिका रद्द कर दी है, जिसमें उन्होंने न्यायमूर्ति एमआर शाह को मामले की सुनवाई से अलग करने की मांग की थी।
बता दें कि उन्होंने 1990 के हिरासत में मौत मामले में दोषसिद्धि के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में अपनी अपील के समर्थन में अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत करने से संबंधित मामले की सुनवाई से न्यायमूर्ति एमआर शाह को हटाने की गुहार लगाई थी।
गुजरात सरकार के वकील ने किया विरोध
भट्ट के वकील ने 9 मई को तर्क दिया था कि पूर्वाग्रह की एक उचित आशंका है, क्योंकि न्यायमूर्ति शाह ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उसी प्राथमिकी से जुड़ी उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को फटकार लगाई थी। हालांकि, गुजरात सरकार के वकील और शिकायतकर्ता ने इसका विरोध किया और कहा कि इस मामले को लेकर पहले आपत्ति क्यों नहीं जताई गई।
भट्ट की याचिका रद्द
जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की शीर्ष अदालत की बेंच ने भट्ट की याचिका को खारिज करने से इनकार कर दिया। भट्ट ने प्रभुदास वैष्णानी की हिरासत में मौत के मामले में अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी।
मंगलवार को भट्ट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कहा था कि जस्टिस शाह ने हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में इसी प्राथमिकी से जुड़ी भट्ट की याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता की निंदा की थी और फटकार लगाई थी। कामत ने कहा, ‘इस अदालत के लिए मेरे मन में सर्वोच्च सम्मान है, लेकिन न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि होता हुआ दिखना भी चाहिए। न्यायिक औचित्य की मांग है कि आप इस मामले की सुनवाई से अलग हो जाएं।’
2019 में सुनाई गई थी सजा
गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने भट्ट की याचिका से खुद को अलग करने का विरोध किया और कहा, ‘उनकी दलील में कोई सच्चाई नहीं है क्योंकि न्यायमूर्ति शाह ने कई अन्य मामलों की सुनवाई की है। इससे पहले अगस्त 2022 में भट्ट ने शीर्ष अदालत में 30 साल पुराने हिरासत में मौत के मामले में अपनी उम्रकैद की सजा को निलंबित करने की अपनी याचिका वापस ले ली थी। भट्ट को इस मामले में जून 2019 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला प्रभुदास वैष्णानी की हिरासत में मौत से संबंधित है। वह भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के मद्देनजर एक सांप्रदायिक दंगे के बाद जामनगर पुलिस द्वारा पकड़े गए 133 लोगों में से थे। इसके बाद, उनके भाई ने भट्ट पर, जो तब जामनगर में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात थे, और छह अन्य पुलिसकर्मियों पर वैष्णनी को हिरासत में मौत के लिए प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई थी।