जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएसी) के गठन की भूमिका से राजभवन को बाहर किये जाने पर हेमंत सरकार और भाजपा आमने-सामने है। हेमंत सरकार ने नयी नियमावली जारी कर टीएसी के गठन से राजभवन की भूमिका को खत्म कर दिया है। इसके सदस्यों का मनोनयन अब टीएसी के पदेन अध्यक्ष के नाते मुख्यमंत्री करेंगे। हां, जनजातीय आबादी के विकास के लिए राज्यपाल को टीएसी की सलाह लेने का अधिकार रहेगा।
हेमंत सरकार के इस फैसले के खिलाफ रविवार को भाजपा राजभवन पहुंची और राज्यपाल को ज्ञापन सौंपकर राज्य सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक करार दिया। पहले टीएसी के सदस्यों के मनोनयन के लिए राज्य सरकार राज्यपाल के पास नाम भेजती थी। हेमंत सरकार ने सदस्यों के मनोनयन के लिए दो बार नाम भेजे मगर राजभवन ने उसे वापस लौटा दिया। तब हेमंत सरकार ने इसका विकल्प निकाला और नयी नियमावली लाकर राजभवन की भूमिका को ही खत्म कर दिया। दो दिन पहले टीएसी रूल 2021 की अधिसूचना जारी कर दी गई। इसके साथ ही संयुक्त बिहार के समय 1958 का बिहारट्राइब्स एडवाइजरी काउंसिल रूल्स खुद व खुद अप्रभावी हो गया। जनजातीय बहुल आबादी वाले इस प्रदेश में इस कमेटी का अपना महत्व है। इस कमेटी में मुख्यमंत्री पदेन अध्यक्ष, अनुसूचित जनजाति, जाति, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री इसके पदेन उपाध्यक्ष होंगे। इनके अतिरिक्त समिति में 18 सदस्यों का प्रावधान किया गया है।