ईरान से एक बार फिर भारत के लिए टेंशन बढ़ाने वाली खबर आ रही है. चीन और ईरान के बीच 25 सालों के आर्थिक सहयोग के लिए एक समझौता साइन हुआ है. इस समझौते के साइन होने के बाद एक नहीं बल्कि कई ऐसी वजहें हैं जिसके बाद भारत को परेशान होने की जरूरत है. विशेषज्ञों की मानें तो इस समझौते के बाद भारत को ईरान की तरफ अपनी नीतियों को फिर से देखने की जरूरत है. जानिए क्या है यह समझौता और क्यों भारत की चिंताएं इसके बाद बढ़ने वाली है.
400 बिलियन डॉलर वाली डील
24 मार्च को ईरान के साथ चीन ने 400 बिलियन डॉलर की डील की है. जो समझौता हुआ है उसे ‘स्ट्रैटेजिक को-ऑपरेशन पैक्ट’ नाम दिया गया है. चीनी विदेश मंत्री वांग वाई ने पिछले दिनों 6 दिवसीय दौरे पर ईरान गए थे. वांग वाई ने इसी दौरान अपने ईरानी समकक्ष के साथ इस डील को साइन किया है. ईरान के विदेश मंत्रालय की तरफ से बताया गया है कि इस डील में ‘राजनीति, रणनीति और अर्थव्यवस्था’ से जुड़े सभी तत्व मौजूद हैं. यह समझौता ट्रांसपोर्ट, बंदरगाहों, ऊर्जा, उद्योग और सेवाओं के क्षेत्र में जरूरी निवेश का एक ब्लूप्रिंट तैयार करने में मदद करेगा.
डील के बारे कुछ नहीं बताया
इस ‘रहस्यमयी’ डील के बारे में किसी को भी कुछ नहीं बताया गया है. सिर्फ इतनी ही खबर लग पाई है कि चीन अगले 25 सालों तक ईरान में 400 बिलियन डॉलर का निवेश करेगा. इसके बाद ईरान उसे कम कीमत पर कच्चा तेज सप्लाई करेगा. ईरान के लिए यह जरूरी राहत की बात है क्योंकि वह इस समय अमेरिका के कड़े प्रतिबंधों से गुजर रहा है. गौरतलब है कि ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भी चीन का संपर्क लगातार इस देश से बना रहा है. अमेरिका की तरफ से साल 2018 में ईरान के साथ परमाणु समझौते को खत्म करके उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए गए थे.
भारत को परेशान होने की जरूरत
भारत को और ज्यादा परेशान होने की जरूरत है क्योंकि ईरान ने कभी भी चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) का विरोध नहीं किया है. उसने हमेशा ही इसमें शामिल होने की इच्छा जताई है. सिर्फ इतना ही नहीं ईरान की अथॉरिटीज की तरफ से पाकिस्तान के ग्वादर को चाबहार से जोड़ने का प्रस्ताव पहले ही चीन को दिया जा चुका है. भारत हमेशा से चाबहार को एक ऐसे बंदरगाह के तौर पर देखता है जहां से वो ग्वादर बंदरगाह को प्रभाव कम कर सकता है. भारत हमेशा से बीआरआई का विरोध करता आया है.
चीन हो जाएगा ताकतवर
अब तक कम से कम 18 अरब देश चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट का हिस्सा बन चुके हैं. चीन आधे से ज्यादा कच्चा तेल ईरान से आयात करता है. इसके अलावा इस क्षेत्र के 11 देशों के लिए चीन सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है. ईरान के साथ हुए समझौते के बाद पश्चिम एशिया में चीन को ताकतवर होने से कोई नहीं रोक पाएगा. ईरान वह देश है जहां पर रणनीतिक अहमियत वाला स्ट्रैट ऑफ होरमुज स्थित है. चीन ने डील के साथ एक बड़े खिलाड़ी के तौर पर इस क्षेत्र में एंट्री कर ली है. यहां से चीन न सिर्फ सेंट्रल एशिया में खुद की जगह बनाएगा बल्कि वह यूरेशिया क्षेत्र में भी दबादबा कायम करने वाला देश बन सकेगा.
लगातार पश्चिम एशिया में कदम जमाता ईरान
चीन लगातार पश्चिम एशिया में अपने कदम जमा रहा है. इस देश के हर बड़े देश के साथ उसने अपने संबंध बेहतर कर लिए हैं. चीन ने खुद को इन देशों को डेवलपमेंट पार्टनर के तौर पर करार दिया है लेकिन अंदर ही अंदर वह एक ऐसा जाल बिछा रहा है जिसमें इन देशों का फंसना तय है. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर प्रतिबंध लगाए. मगर नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ईरान को समझौते की पेशकश की. उन्होंने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को बहाल करने के लिए कुछ शर्ते रखी हैं. इस पूरे मामले पर कोई नतीजा निकलता इससे पहले ही चीन ने ईरान के साथ डील साइन कर ली है.