हास्य व्यंग्य कवि पंकज प्रसून ने एक रोचक जानकारी यह दी कि शायद बहुत कम लोगों को यह कम पता है कि राजू श्रीवस्तव एक प्रतिष्ठित अखबार में हास्य व्यंग का स्तंभ भी लिखते थे। हृदयाघात के एक दिन पहले ही उन्होंने अपना आखिरी कालम लिख कर दिया था। लेकिन, अब कालम और कलम दोनों शांत हो गई।
पंकज प्रसून ने कहा कि राजू श्रीवास्तव काे जाना तो कॉमेडियन के तौर पर जाता है, लेकिन वह अवधी के उन्नायक भी थे। उन्होंने अवधी बोली के प्रतीक, बिंबों का अपनी कॉमेडी में प्रयोग किया। इतनी ज्यादा देशज खुशबू वाला कोई दूसरा कॉमेडियन नहीं हुआ। वह मृतप्राय चीजों से भी कॉमेडी निकाल लेते थे, जैसे बिस्कुट मुस्कुराया, बम बोला-इजाजत हो तो फट लूं।
भैंस का पगुराना, मरकही गाय की दुलत्ती, कुत्तों की बतकही, खप्पर, छप्पर सबको कॉमेडी में इस तरह से पिरोया कि सुनने वाले कि हंसी ही न रुके। वह तमाम नेता अभिनेताओं की महज़ आवाज ही नहीं निकालते थे बल्कि वह आम जन की आवाज थे। यह समझ से परे है कि जनता के हृदय को आनंद से भर देते वाला यह इंसान ह्रदयघात से कैसे मर गया। लगता है स्वर्ग में हास्य की बेहद कमी है, शायद इसीलिए उनको ईश्वर ने अपनी महफिल में बुला लिया।