नई दिल्ली। पाकिस्तान में रहने वाला अल्पसंख्यक समुदाय हर वक्त डर के साए में जीता है। ऐसा इसलिए क्योंकि वहां पर अल्पसंख्यकों के लिए समान नियम कायदे नहीं है। ये इसलिए क्योंकि वहां के राजनेताओं की ही नहीं बल्कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों की सोच भी इसी तरह की है। इसका एक उदाहरण पाकिस्तान के दूसरे पीएम रहे ख्वाजा नजीमुद्दीन का वो बयान है जो उन्होंने उस वक्त दिया था जब पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को लेकर सवाल उठाए जा रहे थे। उन्होंने कहा था कि वो नहीं मानते हैं कि धर्म किसी का निजी मामला हो सकता है। वो ये भी नहीं मानते हैं कि एक इस्लामिक देश में सभी का समान अधिकार होना चाहिए। उनके इस बयान में सीधेतौर पर निशाना अल्पसंख्यक समाज ही रहा है। इनमें भी हिंदू समुदाय के लोग वहां के कट्टरपंथियों के निशाने पर हमेशा ही रहे हैं। यही वजह है कि पाकिस्तान में हिंदू और दूसरे धर्म के लोग भी अपना वजूद बचाने की कोशिश में जुटे हैं।
ईश निंदा कानून
पाकिस्तान में हिंदुओं समेत सभी अल्पसंख्यकों के खिलाफ होने वाले अपराधों का ग्राफ भी काफी डराने वाला रहा है। पाकिस्तान में ईश निंदा कानून में आरोपी के लिए बचना बेहद मुश्किल है। इसमें जुर्माना, कठोर कारावास से लेकर उम्रकैद और फांसी की सजा तक का प्रावधान है। इस कानून की खास बात ये है कि इसमें किसी भी तरह के ठोस सबूत की अदालत के समक्ष पेश करने की भी जरूरत नहीं पड़ती है। इस तरह से ये कानून पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के हर व्यक्ति के ऊपर लटकी उस तलवार की तरह है तो कभी भी उसकी गर्दन को धड़ से अलग कर सकती है।
पाकिस्तान में हिंदू आबादी
1997 में पाकिस्तान की कुल आबादी का करीब 10 फीसद अल्पसंख्यक थे जिसमें महज 1.6 फीसद हिंदू थे। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की खराब स्थिति पर समय-समय पर संयुक्त राष्ट्र भी नाराजगी दर्ज करवाता रहा है। 2017 के आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तान में हिंदुओ की आबादी 4.5 लाख से भी कम है। आंकड़ों के मुताबिक साल दर साल अल्पसंख्यंक समुदाय के खिलाफ होने वाले अपराध बढ़ते ही गए हैं।
जबरन धर्म परिवर्तन को लेकर बिल
पाकिस्तान में अल्पसंख्यक और इनमें भी हिंदुओं की स्थिति की अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वर्ष 2016 में सिंध में जबरन धर्म परिवर्तन को कानूनी जामा पहनाने के लिए एक बिल असेंबली में रखा गया था, हालांकि गवर्नर ने इसे पास नहीं किया, जिसकी वजह से ये कानून नहीं बन सका था। पाकिस्तान में एक गैर सरकारी संस्था के मुताबिक 2014 में करीब 1000 लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन कर उन्हें मुस्लिम बनाया गया था। इस पर जब काफी बवाल हुआ और मामला अंतरराष्ट्रीय मीडिया में पहुंचा तो 2019 में जबरन धर्म परिवर्तन करने के खिलाफ देश की नेशनल असेंबली में एक कानून पारित किया गया था।
मदद से दूर हिंदू परिवार
कोरोना महामारी के दौरान दी जाने वाली मदद से भी हिंदू और इसाई परिवारों को दूर रखा गया था। पाकिस्तान की सायलानी वेलफेयर ट्रस्ट ने इस बात का ऐलान किया था कि उनकी मदद केवल मुस्लिम परिवारों के लिए ही है। इस पर यूएस कमीशन आन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम की तरफ से कड़ी नराजगी दर्ज कराई गई थी। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर होने वाले हमले भी कोई नई बात नहीं हैं।
हिंदू और अल्पसंख्यंकों पर हमले
मई 2010 के हमले में मारे गए 94 लोग अल्पसंख्यक समुदाय से ही ताल्लुक रखतेइस हमले की जिम्मेदारी तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान ने ली थी। ये हमला हालांकि अहमदिया को निशाना बनाते हुए किया था लेकिन निशाने पर अल्पसंख्यक ही थे। अहमदियाओं को पाकिस्तान में कभी मुस्लिम समुदाय का हिस्सा नहीं माना गया है। इतना ही नहीं देश के पूर्व राष्ट्राध्यक्ष और तानाशाह जिया उल हक ने तो उन पर खुद को मुस्लिम कहने पर ही रोक लगा दी थी।
अभाव में जीते हिंदू
पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू समुदाय की बात करें तो वो हमेशा ही अभाव में ही जीता रहा है। हिंदू समुदाय की लड़कियों का अपहरण, हत्या, दुष्कर्म और जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएं बेहद आम हैं। हिंदुओं के धार्मिक स्थलों को तोड़ना यहां के कट्टरपंथियों की पुरानी परंपरा का ही हिस्सा रहा है। जनवरी 2017 में जब अगवा की गई दो हिंदू लड़कियों को एक मदरसा से बरामद किया गया था तो यहां के कट्टरपंथी समुदाय ने हरीपुर जिले के मंदिर में जमकर तोड़फोड़ की थी।
हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़
इससे पहले 2006 में लाहारै के हिंदू मंदिर को तोड़ा गया और वहां पर एक बहुमंजिला इमारत बना दी गई। मई 2010 में कराची में हिंदू समुदाय के लोगों पर हमला किया गया जिसमें 60 हिंदू घायल हुए थे। ये मामला एक मस्जिद में एक हिंदू के पानी पीने से जुड़ा था। इस घटना के बाद यहां पर रहने वाले करीब 400 परिवारों को उनके ही घर से बेदखल करने का ऐलान खुलेआम किया गया था1 2014 में पेशावर के हिंदू मंदिर पर हमला किया गया और जमकर तोड़फोड़ की गई थी। इस साल लरकाना में एक हिंदू मंदिर को आग के हवाले कर दिया गया था।
नष्ट किए जा चुके हैं अधिकतर मंदिर
पाकिस्तान मीडिया की रिपोर्ट बताती है कि 1990 के बाद से अब तक करीब 95 फीसद हिंदू मंदिरों को पूरी तरह से या तो नष्ट कर दिया गया है या फिर उनकी जगह कुछ और स्थापित कर दिया गया है। इस रिपोर्ट में हिंदू राइट मूवमेंट के आंकड़ों का जिक्र किया गया है। 2019 में पंजाब के एक मंत्री ने एक टीवी चैनल पर प्रसारित कार्यक्रम के दौरान खुलेआम हिंदू समुदाय पर तीखी टिप्पणी तक की थी। वर्ष 2021 में सिंध में हिंदू समुदाय के 60 लोगों के जबरन धर्म परिवर्तन कराने का मुद्दा काफी तूल पकड़ा था। पाकिस्तान हिंदू राइट ग्रुप की रिपोर्ट के मुताबिक देश में मौजूद करीब 428 मंदिरों में से केवल 20 ही ऐसे हैं जो आपरेट हो रहे हैं। अन्य की हालत बेहद खराब है और इस पर किसी का कोई ध्यान नहीं है।
हिंदू सांसद का ये कहना
भारत में बाबरी मस्जिद मामले के बाद पाकिस्तान में बड़ी संख्या में हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था। इस तरह की घटना केवल एक प्रांत में ही नहीं हुई बल्कि सभी प्रांतों में इस तरह की घटनाएं हुई थीं। पाकिस्तान में पीएमएल-एन के हिंदू सांसद डाक्टर रमेश कुमार वंकवानी का कहना है कि हर साल देश से करीब 5 हजार हिंदू पलायन कर जाते हैं। अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाले ईश निंदा कानून की बात करें तो 1947 के बाद से अब तक करीब 1415 लोग इसका शिकार बन चुके हैं। पाकिस्तान थिंक टैंक सेंटर फार रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडी की रिपोर्ट के मुताबिक 81 लोगों की हत्या इस आरोप के तहत अब तक की गई है। इनमें 71 पुरुष तो 10 महिलाएं शामिल हैं।