गोरखपुर, । घनी आबादी, लबे सड़क और सरेशाम जिस अंदाज में उमेश पाल व उनके गनर को गोलियों से भून दिया गया, उससे एक बार फिर माफिया अतीक के दहशत को कायम करने की कोशिश की जा रही है। दुस्साहसिक अंदाज में हुई वारदात से पुलिस और प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं। लोग यह भी कहने लगे हैं कि ऐसे तो माफिया अतीक का आतंक खत्म नहीं होगा। ऐसा तब है जब अतीक और उसके गुर्गों के खिलाफ लगातार कार्रवाई की जा रही थी, लेकिन हाईप्रोफाइल राजूपाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल की हत्या करके पुलिस को खुलेआम चुनौती दी गई है। इससे न केवल जिले में कानून-व्यवस्था ही नहीं बल्कि अपराध व अपराधियों पर अंकुश लगाने के दावे खोखले साबित हो रहे हैं।
कार्रवाई के बाद भी जारी है आतंक
प्रदेश में योगी राज के पहले कार्यकाल में माफिया अतीक और उसके गुर्गों पर कार्रवाई शुरू हुई थी। अलग-अलग मुकदमों में वांछित चल रहे भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ सहित कई करीबियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। इसके बाद गैंगस्टर एक्ट के तहत अतीक गिरोह के आर्थिक सामाज्य पर भी बड़ी चोट पहुंचाई गई। अतीक और उसके गुर्गों की एक हजार करोड़ रुपये से अतीक की संपत्ति को जब्त व कुर्क करने की कार्रवाई की जा चुकी है।
लोगों के दिलों से निकलने लगा था खौफ
माफिया पर कानून प्रहार होने के साथ ही उसके आतंक का खौफ लोगों के दिलों से निकलने लगा था। तमाम लोगों ने अतीक गैंग की खिलाफत करते हुए मुकदमा दर्ज कराया। मगर शुक्रवार को उमेश पाल और उनके सरकारी गनर की हत्या ने एक बार फिर अतीक के आतंक की आहट होने लगी। फिलहाल कुछ लोगों का यह भी कहना है कि वारदात में शामिल शूटरों का भी अंजाम बुरा होगा।
उमेश पाल ने मौत से पहले किया कॉल, फायरिंग सुन एडीजीसी स्तब्ध
उमेश पाल हत्या से कुछ देर पहले अपने अपहरण के मुकदमे की पैरवी कर कोर्ट से निकले थे। उन्हें क्या पता था कि घर के पास ही मौत उनका इंतजार कर रही है। शूटर उनकी ताक में वहां चौतरफा घेरा डाले हैं। अदालत से निकलने के कुछ कुछ देर बाद उमेश ने सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता सुशील वैश्य को फोन किया और एक ही शब्द गाड़ी…बोल सके थे और फायरिंग की आवाज आने लगी। फिर खबर मिली कि उमेश पर हमला हो गया है तो सभी स्तब्ध रह गए। फिर सुशील समेत अन्य अधिवक्ता अस्पताल रवाना हो गए। सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता के मुताबिक, राजू पाल हत्याकांड के चश्मदीद गवाह उमेश पाल का अदालत में गवाही से ठीक एक दिन पहले 28 फरवरी 2006 को अपहरण हो गया था।
अपहर्ताओं के चंगुल से छूटने के बाद दूसरे दिन कोर्ट में जाकर उमेश पाल ने अपना बयान बदल लिया था यानी पक्ष द्रोही हो गए। राजू पाल हत्याकांड, उमेश पाल का अपहरण और अदालत में गवाही के वक्त प्रदेश में सपा सरकार थी और उस सरकार में हत्याकांड के आरोपित अतीक अहमद का खासा दबदबा था। साल भर बाद यानी 2007 में प्रदेश में सरकार बदली और मायावती मुख्यमंत्री बनी। तब उमेश पाल ने पांच जुलाई 2007 को अतीक और अशरफ समेत 11 लोगों के खिलाफ अपहरण कर चकिया कार्यालय में बंधक बनाकर पीटने, धमकाने और गवाही से पलटने का दबाव बनाने का मुकदमा लिखा दिया।
उमेश पाल का आरोप था कि अपहरण और धमकाने के बाद दूसरे दिन एक मार्च 2006 को अतीक ने खुद कोर्ट में बैठकर चारो गवाहों के बयान अपने पक्ष में दर्ज करवाए थे। सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता सुशील वैश्य बताते हैं कि उमेश पाल अपहरण कांड में अतीक और अशरफ समेत 10 लोगों के विरुद्ध एमपी-एमएलए की विशेष अदालत में ट्रायल चल रहा है। एक आरोपित की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो चुकी है। मुकदमे में अंतिम बहस की सुनवाई जारी थी। शुक्रवार को भी मामले की सुनवाई हुई। अगली सुनवाई के लिए 27 फरवरी की तिथि नियत की गई थी।