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देश में गिने-चुने मुसलमान ही सहिष्णु पद पाने के लिए पहन लेते हैं सहिष्णुता का मुखौटा केंद्रीय मंत्री


नई दिल्ली, । केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह बघेल (S P Singh Baghel) ने मंगलवार को कहा कि देश में सहिष्णु मुसलमानों को उंगलियों पर गिना जा सकता है। हालांकि, वे भी राष्ट्रपति, राज्यपाल या कुलपति का पद पाने के लिए सार्वजनिक जीवन में सहिष्णुता का मुखौटा ओढ़ लेते हैं। ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवियों का असली चेहरा अपना कार्यकाल पूरा करने या सेवानिवृत्ति होने के बाद सामने आता है। बघेल ने सोमवार को पत्रकारों को पुरस्कार देने के लिए आरएसएस के मीडिया विंग इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र द्वारा आयोजित देव ऋषि नारद पत्रकार सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की।

”सहिष्णु मुसलमानों को उंगलियों पर गिना जा सकता है”

केंद्रीय कानून और न्याय राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल ने कहा, ”सहिष्णु मुसलमानों को उंगलियों पर गिना जा सकता है। मुझे लगता है कि उनकी संख्या हजारों में भी नहीं है। ये मुसलमान भी सार्वजनिक जीवन में सहिष्णु होने का नकाब पहनकर रहते हैं, ताकि उपराष्ट्रपति, राज्यपाल या कुलपति का पद हासिल हो सके, लेकिन जब वे सेवानिवृत्त होते हैं, तो वे वास्तविक बयान देते हैं। जब वे कुर्सी छोड़ते हैं, तो वे ऐसा बयान देते हैं जो उनकी वास्तविकता को दर्शाता है।”

केंद्रीय मंत्री की यह टिप्पणी सूचना आयुक्त उदय माहुरकर द्वारा कार्यक्रम में दिए गए उनके भाषण के बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत को इस्लामी कट्टरवाद से लड़ना चाहिए, लेकिन सहिष्णु मुसलमानों को साथ लेना चाहिए।

”अकबर की जोधाबाई से शादी उसकी रणनीति का हिस्सा थी”

मुगल सम्राट अकबर के अपने शासन के दौरान हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के प्रयासों का उल्लेख करते हुए माहुरकर ने दावा किया कि छत्रपति शिवाजी ने इसको एक सकारात्मक पहल के रूप में देखा था। उन्होंने कहा, “अकबर ने हिंदू-मुस्लिम एकता हासिल करने की पूरी कोशिश की।” हालांकि, बघेल ने उनकी टिप्पणी को खारिज करते हुए अकबर के प्रयासों को महज ‘रणनीति’ करार दिया और आरोप लगाया कि मुगल बादशाह की जोधाबाई से शादी उनकी ‘राजनीतिक रणनीति’ का हिस्सा थी।

केंद्रीय मंत्री ने कहा, “यह उनके दिल से नहीं निकला था। अन्यथा, चित्तौड़गढ़ का नरसंहार नहीं होता।” उन्होंने कहा, “मुगल काल … औरंगजेब के कर्मों को देखें। कभी-कभी, मुझे आश्चर्य होता है कि हम कैसे जीवित रहे।”  बघेल ने कहा कि भारत के बुरे दिन 1192 ईस्वी में शुरू हुए, जब मुहम्मद गौरी ने राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान को हराया।

तलवार से अधिक गंडे-ताबीज के दम पर हुआ धर्मांतरण

केंद्रीय मंत्री ने धर्मांतरण का मुद्दा भी उठाया और आरोप लगाया कि जिन लोगों को ‘गंडे-ताबीज’ (ताबीज) के माध्यम से दूसरे धर्म में परिवर्तित किया गया है, उनकी संख्या तलवार के नीचे वालों की तुलना में अधिक है। उन्होंने कहा, “चाहे वह ख्वाजा गरीब नवाज साहब हों, हजरत निजामुद्दीन औलिया, या सलीम चिश्ती … आज भी, हमारे समुदाय के लोग बड़ी संख्या में बच्चे, नौकरी, टिकट (चुनाव लड़ने के लिए), मंत्री पद, राज्य मंत्री से कैबिनेट मंत्री की पदोन्नति की मुराद मांगने के लिए जाते हैं।”

उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा दे सकती है समस्या का समाधान

बघेल ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को लगता है कि चूंकि वे इतने लंबे समय तक ‘शासक’ रहे, तो वे ‘प्रजा’ कैसे बन सकते हैं। समस्या का समाधान अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने में निहित है। यह एक दिन समस्या का कुछ समाधान दे सकती है।

“भौतिक और रसायन विज्ञान पढ़ेंगे तो अब्दुल कलाम बन जाएंगे”

केंद्रीय मंत्री ने कहा, “अगर वे मदरसे में पढ़ेंगे तो उर्दू, अरबी और फारसी सीखेंगे। सारा साहित्य अच्छा है, लेकिन इस तरह के अध्ययन से वे पेश-इमाम बन जाएंगे।  अगर वे भौतिकी और रसायन विज्ञान पढ़ते हैं, तो वे अब्दुल कलाम बन जाएंगे।”