देहरादून। चारधाम आलवेदर रोड परियोजना की निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों का हौसला भी पहाड़ जैसा मजबूत निकला।
बाहर शासन-प्रशासन से लेकर केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियां श्रमिकों को बचाने के लिए जान लड़ा रही थीं तो भीतर श्रमिकों ने उम्मीद का दीया जलाए रखा। मुश्किल वक्त में धैर्य रखा और एक-दूसरे का मनोबल बढ़ाते रहे।
श्रमिकों ने ऐसे हल्का-फुल्का बनाए रखा माहौल
सुरंग में फंसे श्रमिकों ने बाहर हो रही कवायद, घर परिवार और यारी-दोस्ती के किस्सों के साथ मोबाइल गेम और कहानियां सुनाकर भीतर के भारी माहौल को भी हल्का-फुल्का रखा।
पाइप के जरिये जब किसी अधिकारी और स्वजन से बात होती तो एक ही शब्द सुनाई देता, हौसला रखिए…सब ठीक होगा। पाइप के दूसरे छोर से श्रमिक भी कहते ‘हम ठीक हैं, चिंता मत करना’। इन बातों ने श्रमिकों का मनोबल बढ़ाया। बस फिर क्या था जिंदगी….जिंदा दिली का नाम है।
योगाभ्यास ने की ये मदद
अवसाद से बचने के लिए श्रमिकों ने सुरंग के भीतर नियमित योगाभ्यास किया। किसी बुरे सपने सरीखे इन 17 दिन के बाद आखिरकार श्रमिकों ने खुली हवा में सांस ली। दरअसल जो श्रमिक सुरंग में फंसे थे, ये इन विषम परिस्थितियों में काम करने के अभ्यस्त थे।
सुरंग में फंसे नवयुग कंपनी के फोरमैन गब्बर सिंह ने श्रमिकों को निरंतर इसके लिए प्रेरित किया। बकौल गबर सिंह, श्रमिक अवसाद में न जाएं इसके लिए वह सभी को प्रतिदिन सुरंग में टहलने के लिए प्रेरित करते थे। सभी श्रमिक आपस में बात करते रहें, कोई अकेला न रहे, इसके लिए सभी एक-दूसरे को किस्से और कहानियां सुनाते थे। छह इंच के पाइप के जरिये श्रमिकों के लिए मोबाइल और लूडो भेजा गया, संचार की व्यवस्था की गई।
स्मारक के तौर पर सहेज कर रखेंगे बैट-बाल
एनएचआइडीसीएल के कर्नल दीपक पाटिल ने बताया कि सुरंग में फंसे मजदूरों को समय काटने और मनोबल बढ़ाए रखने के लिए पाइप के रास्ते बैट-बाल भेजे गए थे। अब इस बैट-बाल को एनएचआइडीसीएल आफिस में स्मारक के तौर पर सहेज कर रखा जाएगा।