नयी दिल्ली । बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने आ चुके हैं। राजनीतिक दृष्टि से बेहद जागरूक बिहार की जनता ने केंद्र में नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के दोहरे नेतृत्व पर मुहर लगाई है। आजादी के बाद बिहार में पहली बार सबसे अधिक वोट पड़े और इसमें महिलाओं ने पहली बार बढ़-चढ़कर भागीदारी की, जाहिर है इन परिणामों में उनकी भूमिका निर्णायक रही। भाजपा और जनता दल यूनाइटेड सहित किसी भी राजनीतिक दल या विश्लेषक ने यह अनुमान नहीं लगाया था कि एनडीए का आंकड़ा 200 पार कर जाएगा। साफ दिख रहा है कि महिला मतदाताओं ने जाति से ऊपर उठकर स्थायित्व के पक्ष में मतदान करके मोदी-नीतीश के सुशासन को मजबूती दी है। राज्य की जनता ने डबल इंजन की सरकार के विकास और सामाजिक सुरक्षा से जुड़े कार्यों पर मुहर लगाई है। इन चुनाव परिणामों ने दिखाया है कि बिहार में 1990 के दशक में जातिवाद के साथ शुरू हुआ सामाजिक न्याय अब सर्व समावेशी समाज की तरफ मुड़ चुका है और राष्ट्रीय जनता दल का एम-वाई समीकरण पूरी तरह बिखर चुका है। जाति जनगणना, लालू- राबड़ी परिवार की अंतर्कलह और उनके ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने इस समीकरण को तोड़ने में उत्प्रेरक का काम किया।पूरे चुनाव में जहां एनडीए का कुनबा एकजुट दिखा, वहीं महागठबंधन में शुरू से ही कई गांठें दिखीं। महागठबंधन के दो प्रमुख घटक दलों राजद और कांग्रेस के बीच कोई तालमेल नहीं दिखा। राहुल गांधी की सामाजिक न्याय यात्रा में भीड़ तो जुटी थी, लेकिन कांग्रेस पार्टी में कोई जोश नहीं दिखा। चुनाव प्रचार जब अपने चरम पर था, तो उसी समय राहुल गांधी विदेश यात्रा पर निकल गए। इससे कार्यकर्ताओं और आम जनता के बीच नकारात्मक संदेश गया। जन सुराज पार्टी ने इस चुनाव में वोट कटवा की भूमिका निभाई। प्रशांत किशोर की रणनीति अपने घर में ही विफल रही। शराबबंदी का विरोध करके उन्होंने महिला मतदाताओं को नाराज किया। बिहार के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में एआईएमआईएम की जीत यह दिखाती है कि तमाम योजनाओं का लाभ उठाने के बावजूद मुस्लिम मतदाता भाजपा को अभी भी स्वीकार नहीं कर पाए हैं।
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